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________________ ( ४३ ) इस कथा के प्रारम्भ में बाणभट्ट की 'हर्षाख्यायिका' और धनपाल कवि को 'तिलकमञ्जरी' आदि कथाओं की तरह, कितने एक प्राचीन कवि और उनके ग्रन्थों की प्रशंसा की हुई है । इस कवि प्रशंसा में, अन्त में, हरिभद्रसूरि की भी उनकी बनाई हुई प्रशमरस परिपूर्ण प्राकृत भाषात्मक 'समराइच्चकहा' के उल्लेख पूर्वक - इस प्रकार प्रशंसा की गई है— जो इच्छइ भवविरहं भवविरहं को न बंधए सुयणो । समयसयसत्थगुरुणो समरमियंका ' कहा जस्स || डेकन कालेज संग्रहीत पुस्तक, पृ० २ (लिपिकर = लिखे हुए पुस्तककी नकल करनेवाला) की तरह मात्र नकल बनाने जैसी है । अपने गुरुभ्राता के ऐसे उपहासात्मक वचन सिद्धर्षि के दिल में चुभ गये और फिर उन्होंने अष्ट प्रस्ताव वाली सुप्रसिद्ध उपमितिभवप्रपंचकथा की अपूर्व रचना की। इस सुवोध कथा के आह्लादक व्याख्यान को सुन कर जैन समाज (संघ) ने सिद्धर्षि को 'व्याख्याता' की मानप्रद पदवी समर्पित की । इत्यादि । [ द्रष्टव्य प्रभावकचरित, निर्णयसागर पृष्ठ २०१-२०२ श्लोक ८८ - ९७ ) [डॉ. जेकोबी, प्रभावकचरित के इस वर्णन को बराबर समझ नहीं सके इस लिये उन्होंने 'कुवलयमालाकथा' को सिद्धर्षि की ही कृति समझ कर असम्बद्ध अर्थ लिख दिया है । ( द्रष्टव्य जेकोबी की उपमितिभव० की प्रस्तावना, पृष्ठ १२, तथा परिशिष्ट, पृष्ठ १०५ । ) ] कुवलयमालाकथा की प्रशस्ति को देखने से मालूम पड़ता है कि प्रभावकचरित के कर्त्ता का उपर्युक्त कथन बिल्कुल असत्य है । क्योंकि कुवलयमाला की रचना उपमितिभवप्रपंचा की रचना से १२७ वर्ष पूर्व हुई है, इसलिये दाक्षियचन्द्र [चिह्न ] का सिद्धर्षि के गुरुभ्राता होने का और उक्त रीतिसे उपहासात्मक वाक्योंके कहने का कोई भी सम्बन्ध सत्य नहीं हो सकता । ] - डेकन कालेज संगृहीत पुस्तक, पृ० २ । . १. हरिभद्रसूरि ने तो स्वयं अपने इस ग्रन्थ का नाम 'समराइच्चकहा' अथवा 'समराइच्चचरियं' [ चरियं समराइच्चस्स, पृ०५, पं० १२] लिखा है, परन्तु यहाँ पर 'समरमियं का' [पं० समरमृगा‌ङ्का ] ऐसा नाम उल्लिखित है; सो इस पाठभेद का कारण समझ में नहीं आता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002118
Book TitleHaribhadrasuri ka Samaya Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size4 MB
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