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________________ ( ११ ) उल्लेख किया हुआ अवश्य विद्यमान है । इस प्रकार के कालगणनात्मक प्रबन्धों में, प्रथम और प्रधानतया जो प्रबन्ध उल्लेख योग्य हैं, वह अञ्चलगच्छीय आचार्य मेरुतुङ्ग का बनाया हआ विचारश्रेणी नामक ग्रंथ है । मेरुतनाचार्य ने अपना प्रबन्धचिन्तामणि' नामक प्रसिद्ध ऐतिसिक ग्रंथ वि० सं० १३६० में समाप्त किया था। प्रस्तत विचारश्रेणी में वि० सं० १३७१ में समरासाह ने शत्रुञ्जय का जो उद्धार किया था, उसका उल्लेख है। इसलिए विक्रम की १४वीं शताब्दी के पिछले पाद में इस प्रबन्ध की रचना हई, ऐसा मानने में कोई आपत्ति नहीं है। इस प्रबन्ध में एक पुरानी प्राकृत गाथा उद्धत की गयी है, जिसमें लिखा है कि विक्रम संवत् ५८५ में हरिभद्ररि का स्वर्गवास हुआ था । गाथा इस प्रकार है-. पंचसए पणसीए विक्कम कालाउ झत्ति अत्थमिओ। हरिभद्रसूरि-सूरो भवियाणं दिसउ कल्लाणं ।। १. यह प्रबन्ध पुरातत्त्वज्ञों को सुपरिचित है । महावीर निर्वाण और विक्रम संवत् के विषय की आलोचना में इतिहासज्ञों को मुख्य कर यही प्रबन्ध विषयभूत रहा है, (द्रष्टव्य जेकोबी की कल्पसूत्र की प्रस्तावना और जार्ल शार्पटियर का 'महावीर समय निर्णय' नामक निबन्ध; इंडियन एंटिक्वेरी, पृ. ४३)। सबसे पहले प्रसिद्ध शोधक डॉo भाऊ दाजी ने, सन् १८७२ में, बम्बई की रायल एसियाटिक सोसाइटी की शाखा के सभ्यों के सम्मुख इस विषय पर एक निबन्ध पढ़ा था । (यह निबन्ध इसी सोसायटी के वृत्तपत्र (जर्नल) के ९ वें भाग में, प. १४७-१५७ पर प्रकट हुआ है) डॉ. बुल्हर ने इसको अंग्रेजी नाम 'Catena of Enquiries' दिया है (इं, ए.पु. २; प० ३६२) । २. यह ग्रन्थ गुजराती भाषांतर सहित अहमदाबाद के रामचन्द्र दीनानाथ शास्त्री ने सन् १८८८ में प्रकाशित किया है । इसका अंग्रेजी अनुवाद भी बंगाल की रायल एसियाटिक सोसाइटी ने प्रकट किया है। ३. इस उद्धार का विशेष उल्लेख लेखक के शत्रुञ्जयतीर्थोद्धारप्रबन्ध नामक पुस्तक के उपोद्घात प. ३१-३३ में है। ४ प्रो. पीटर्सन ने अपनी तीसरी रिपोर्ट के पृ. २७२ पर प्रद्युम्नस रिविरचित 'विचारसारप्रकरण' के और पृ. २८४ पर समयसुन्दरगणि के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002118
Book TitleHaribhadrasuri ka Samaya Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size4 MB
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