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________________ ( १० ) श्लोक इतिहास में ये एक उच्च श्रेणी में विराजमान होने योग्य संविज्ञ हृदयी जैनाचार्य थे। हरिभद्र के जीवन के विषय में उपर्युक्त थोड़ी सी प्रासंगिक बातें लिखने के पश्चात् इस निबन्ध के मुख्य विषय की विवेचना प्रस्तुत हैं । हरिभद्रसूरि के जीवन-वृत्तान्त के विषय में स्वल्प उल्लेख करने वाले जिन ग्रन्थों के नाम ऊपर उद्धत हैं, उनमें इस बात का कोई उल्लेख नहीं है कि ये सूरि किस समय में हुए हैं। इसलिये प्रस्तुत विचार विवेचन में उन ग्रन्थों से हमें किसी प्रकार की साक्षात् सहायता के मिलने की तो बिल्कुल आशा नहीं है । यदि, उन ग्रन्थों में जीवन वृत्तान्त के साथ हरिभद्र के समय का सूचक भी कोई उल्लेख किया हुआ होता तो उनके दिये हुए वर्णनों में कुछ और विशेष महत्ता और विश्वसनीयता आ जाती। परन्तु वास्तव में, उन ग्रन्थकारों का उद्देश्य कोई सन-सम्वत्वार अन्वेषणात्मक इतिहास लिखने का नहीं था। उनका उद्देश्य तो मात्र अपने धर्म के समर्थक और प्रभावक आचार्यों तथा विद्वानों ने, धर्म की प्रभावना के लिये, किस प्रकार के लोगों को चमत्कार बतलाये अथवा किस प्रकार परवादियों के पाण्डित्य का पराभव किया, इत्यादि प्रकार की जो जनमनरंजन बातें पूर्व परम्परा से कण्ठस्थ चली आती थीं, उनको पुस्तकारूढ़ कर शाश्वत बनाने का और इस प्रकार से सर्वसाधारण में धर्म की महत्ता प्रदर्शित करने का था। हां, इस उद्देश्य की दृष्टि से प्रबन्धनायक के विषय में किसी विशेष घटना सूचक संवतादि का कहीं से जो उल्लेख प्राप्त हो जाता था, तो उसे वह अपने निबन्ध में कभी-कभी ग्रन्थित भी कर देता था। परन्तु जिस आतुरता के साथ आज कल हम सन्-संवतादि की प्राप्ति के लिये उत्सुक रहते हैं और उसके अन्वेषण के लिये दीर्घ परिश्रम करते रहते हैं, वैसी प्रकृति भारतवर्ष के पुराने प्रबन्ध लेखकों की नहीं दिखाई देती। __ यद्यपि उक्त कथनानुसार हरिभद्र के जीवन-वृत्तान्त का सूचन करने वाले ग्रंथों में उनके समय का कोई निर्देश किया हुआ नहीं मिलता; तथापि जैन गुरुपरम्परा-सम्बन्धी जो कितने एक कालगणनात्मक प्रबन्धादि उपलब्ध हैं, उनमें से किसी-किसी में इनके समय का an Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002118
Book TitleHaribhadrasuri ka Samaya Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size4 MB
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