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नेमिदूतम्
हनुमद्दतम्
'श्री नित्यानन्द शास्त्री' ( १९ वीं शताब्दी ) की कृति 'हनुमद्त' पूर्व तथा उत्तर दो भागों में विभक्त है जिसमें कुल पद्यों की संख्या ६८ एवं ५८ है । 'कालिदास' रचित 'मेघदूत' के आधार पर लिखे गये समस्यापूर्ति वाले इस दूतकाव्य का प्रतिपाद्य-विषय श्री राम द्वारा हनुमान को दूत बनाकर सीता का अन्वेषण करना है। यह कृति 'खेमराज कृष्णदास' द्वारा विक्रम संवत् १९८५ में बम्बई से प्रकाशित है । हनुमत्सन्देश
_ 'संस्कृत के सन्देशकाव्य' ( राम कुमार आचार्य, परिशिष्ट २) के अनुसार राम कथा पर आधारित 'हनुमत्सन्देश' ( १८८५-१९२० ई० ) 'श्री विज्ञसूरि वीर राघवाचार्य' की रचना है । हरिणसन्देश
मैसूर की गुरुपरम्परा के उल्लेखानुसार 'हरिणसन्देश' आचार्य वेदान्तदेशिक के पुत्र 'श्री वरदाचार्य' की कृति है। हारीतदूतम्
इस काव्य का 'प्रो० मिराशी' लिखित 'कालिदास' नामक पुस्तक (पृ० २५९ ) में उल्लेख मात्र किया गया है । हंसदूतम्
'हंसदूत' नामक विभिन्न कवियों की पांच कृतियों का उल्लेख प्राप्त होता है। इनमें से कृष्ण-कथा से सम्बद्ध शिखरिणी छन्द में निबद्ध ७४२ पद्यों वाले 'हंसदत' के रचयिता 'रूप गोस्वामी' हैं। इसका वर्ण्य-विषय, कंस के अत्याचार के कारण कृष्ण के मथुरा चले जाने पर यमुना तट पर आयी हुई कृष्णजन्य विरह में अपनी सखी को मूर्छावस्था में देखकर ललिता नामक उसकी सखी के द्वारा यमुना में एक हंस को देख उसको दूत बनाकर अपनी सखी की विरह-व्यथा को कृष्ण तक पहुँचाना, है । इसका प्रकाशन सन् १८८८ में कलकत्ता से हुआ है। 'श्री मद्वामन' रचित 'हंसदूत' का प्रतिपाद्य-विषय शापग्रस्त एक यक्ष के द्वारा विरह-पीडिता अपनी प्रिया यक्षिणी तक अपना सन्देश हंस को दूत बनाकर भेजना, है । इसका प्रकाशन सन् १८८८ में कलकत्ता से हुआ है।
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