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नेमिदूतम्
का पता चला है । उक्त दूतकाव्यों में से 'विष्णुदास' रचित 'मनोदूत' का प्रतिपाद्य विषय विष्णुदास नामक व्यक्ति का अपने द्वारा किये गये पापों के परिणामों की कल्पना कर मन को दूत रूप में भगवान् के पास भेजना है। यह दूतकाव्य 'श्री चिन्ताहरण चक्रवर्ती' के सम्पादन में १९३७ में कलकत्ता से प्रकाशित हो चुका है। 'श्री राम शर्मा' रचित 'मनोदूत' का आधार भागवत पुराण है, जिसमें पाने वाले एवं भेजने वाले की उक्ति प्रोक्ति रूप में प्राप्त होता है। 'हृदयदूत' के साथ इसका प्रकाशन कलकत्ता से हो चुका है। 'तैलङ्गव्रजनाथ' ( १७वीं शताब्दी ) लिखित 'मनोदूत' का प्रतिपाद्य विषय दुःशासन द्वारा चीरहरण की जाती हुई द्रौपदी का अपने मन को दूत बनाकर कृष्ण के पास भेजना है। इस दूतकाव्य का प्रकाशन 'निर्णय सागर प्रेस', बम्बई से हुआ है। 'इन्द्रेश भट्ट' ( इन्दिरेश भट्ट ) रचित 'मनोदूत' का प्रकाशन 'हृदयदूत' ( भट्ट हरिहर ) के साथ बम्बई से हुआ है। शेष दो 'मनोदूत' नामक काव्य में से एक का नामोल्लेख कश्मीर के 'हस्तलिखित ग्रन्थों की सूची-पत्र' (पृ० १७० तथा पृ० २८७ ) में किया गया है; किन्तु इसके लेखक का नाम अज्ञात है तथा 'भगवदत्त' (वि० सं० १९६३) रचित ११४ पद्यों वाले 'मनोदूत' का उल्लेख जैन सिद्धान्त भास्कर ( भाग ३, किरण १, पृ० ३७ ) में हुआ है। मयूखदूतम्
'मारवाड़ी कॉलेज', रांची ( बिहार ) के संस्कृत विभागाध्यक्ष 'प्रो. रामाशीष पाण्डेय' रचित मन्दाक्रान्ता छन्द में निबद्ध १११ पद्यों वाले 'मयूखदूत' का प्रतिपाद्य-विषय एक शोध छात्र द्वारा परदेश ( इंग्लैण्ड ) स्थित अपनी प्रिया के पास मयूख = सूर्य किरण को दूत बनाकर अपना सन्देश भेजना है। इसका प्रकाशन 'श्याम प्रकाशन, नालन्दा', ( १९७४ ई०) बिहार से हो चुका है। मयूरसम्देश __'मयूरसन्देश' नामक विभिन्न कवियों द्वारा रचित चार सन्देशकाव्यों में से दो का प्रकाशन हो चुका है तथा दो अप्रकाशित हैं। 'उदय' कवि रचित दो भागों में विभक्त क्रमशः १०७ एवं ९२ पद्यों वाले 'मयूरसन्देश' नामक काव्य का दक्षिण भारत के सन्देश-काव्यों में विशिष्ट स्थान है। काव्य के प्रथम पद्य ( मालिनी छन्द ) को छोड़कर शेष पद्यों का निबन्धन 'मन्दाक्रान्ता छन्द' में किया गया है। इसका प्रतिपाद्य-विषय श्रीकण्ठ के राजकुमार
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