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नेमिदूतम्
अर्थः- हे पुत्रि ! दुःख को छोड़ो पुनः प्रसन्नता को प्राप्त करो, एवं ये अभीष्ट देवता सोत्साहचित्त से तुम्हारे ऊपर उस प्रकार से कृपा करें, जिससे पुनः तुम्हारे पति का एकान्त मिलन में कस कर किया गया आलिंगन उसी क्षण गले में बंधी लताओं जैसी भुजाओं के बन्धन से विच्छिन्न न हो जाय । आरोप्यांके मधुरवचसाऽऽश्वासितेत्वं जनन्या
तस्यामाधि क्षणमपि न या त्वद्वियोगात्कृशांगी। संप्रत्येषा विसृजति यथा सुनतेस्तां तबाजी,
वक्तुं धीरः स्तनितवचनर्मानिनी प्रक्रमेवाः ॥ १०५॥ अन्वयः -- जनन्या, अंके, आरोप्य, मथुरवचसा, इत्थम्, आश्वासिता ( सति ), या, क्षणमपि, आधिम्, न तत्याज, आजी, धीरः, सम्प्रति, यथा, एषा, ताम्, विसृजति, तथा, मानिनीम् सूनृतेः, स्तनितवचनैः, वक्तुम् प्रक्रमेथाः ।
आरोप्येति । जनन्मा अंके आरौप्य हे राजन् ! मात्रा शिवाया उत्संगे संस्थाप्य । मधुरवचसा सरसवाक्यः, इत्थं पूर्वोक्तप्रकारेण, आश्वासिता या निबोधिता सति राजीमती। क्षणमपि आधि मुहूर्तमपि दीनताम् । न तत्याज मामुञ्चत् । आजी धीरः हे सग्रामे दृढः ! सम्प्रति अधुना यथा । एषा तां राजीमती पूर्वाक्तां दीनताम्। विसृजति विस्मरति। तथा, मानिनी राजीमतीम् । सूनृतः स्तनितवचनैः सत्यैः गम्भीरवाग्भिः । वक्तुं प्रक्रमेथाः भाषितुम् उपक्रमत्वम् ( विध्यर्थे लिङ् । 'प्रोप्राभ्यां समर्थाभ्याम्' इत्यात्मने पदम् ) ॥१०५॥
सन्दार्थः - जनन्या-माता शिवा के द्वारा, अंके-- गोद में, आरोग्यरखकर, बैठाकर, मधुरवचसा-प्रियवचनों से, इत्थम्---पूर्वोक्त प्रकार से, आश्वासिता ( सति )--सान्त्वना देने पर भी, या--राजीमती ने, क्षणमपि-- एक क्षण के लिए भी, आधिम्--विरहजन्य दीनता को, न--नहीं, तत्याज-- छोड़ा, आजी--संग्राम में, धीरः--दृढ़, सम्प्रति-अब, इस समय, यथा-- जैसे, एषा--यह राजीमती, ताम्--विरहपीड़ा, विरहजन्य दीनता को, विसृजति--छोड़े, तथा--बैसे, मानिनीम्--राजीमती से, सूनृतैः--सत्य, स्तनितवचनैः--गम्भीर वचनों से, वक्तुम्--बोलना, प्रक्रमेया:--प्रारम्भ करना।
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