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नेमिदूतम्
जाने पर, यस्य-जिस ( भवन समूह ) की, मेचके-नीले, वाससि-वस्त्र को, अंसन्यस्ते सति-कंधे पर रखने पर, कन्धे पर रखे हुए, हलभृतःबलराम की, इव-तरह, सम्प्रति-अब, इस समय, काचिद्-अनिर्वचनीय, मनोहारिणी-मनोहारी, शोभा-आभा, विलसति-स्फुरित होता है, प्रतीत . होता है।
अर्थः -(हे नाथ ! ) श्वेतकमलवत् ( स्फटिकमणिमय भवन समूह के ) धवल चोटी की गोद में नीले मेघ के क्षण भर समीप आ जाने पर जिस भवन समूह की नीले वस्त्र को कन्धे पर रखे हुए बलराम को तरह सम्प्रति अनिर्वचनीय मनोहारी शोभा स्फुरित होती है ।
टिप्पणी- बलराम का वर्ण गौर था तथा वे सदा नीला वस्त्र धारण करते थे जिससे लोग निनिमेष दृष्टि से उनके सौन्दर्य को देखने लगते थे। तदबत् शोभा स्फटिकमणिमय धवलवर्ण वाले भवनों की उस समय होगी जब श्याम मेघ उसकी चोटी के पास आयेगा। प्राप्योद्यान पुरपरिसरे केलिशैले यदूनां,
विश्रामाथं क्षणमभिरति गोमतीवारि पश्यन् । उत्सर्पद्भिर्दधदिव दिवो वर्त्मनो वीचिसंघः,
सोपानत्वं कुरु मणितटारोहणायाग्रयायो ॥६४ ॥
अन्वया - पुरपरिसरे, केलिशैले, यदूनाम्, उद्यानम्, प्राप्य, अग्रयायी, उत्सर्पभिः, वीचिसंधैः, दिवः, वर्त्मनः, मणितटारोहणाय, सोपानत्वम्, दधत् इव, गोमतीवारि, पश्यन्, विश्रामार्थम्, क्षणम्, अभिरतिम्, कुरु ।
प्राप्योद्यानमिति । पुरपरिसरे केलिशले हे नाथ ! पुरसमीपे प्रदेशे वा क्रीडापर्वते । यदूनामुद्यानं प्राप्य यदूनामारामम् आसाद्य । अग्रयायी अग्रेसरः, उत्सर्पदभिः वीचिसंधैः ऊवं प्रसरभिः कल्लोलराजिभिः । दिवो वर्त्मनः मणि. तटारोहणाय नभो मार्गस्य रत्न-तटाऽऽरोहणाय [ मणीनां तटम्-मणितटम् (१० तत्० ) मणितटे आरोहणं मणितटारोहणम् ( १० तत्०, तस्मै ) ] । सोपानत्वं दधदिव शृंखलाभावं बिभ्रदिव । गोमतीवारि पश्यनवलोकयन् । विधामार्थं क्षणम् अभिरति खेदापनयनार्थं तत्र मुहूर्तम् अवस्थानम्, कुरु विधेहि ॥ ६४॥
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