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________________ गाथासप्तशती - प्रकरणानुसार पुस क्रिया का अर्थ पोंछना है, स्पर्श करना नहीं । गम्मड की संस्कृतच्छाया गम्यताम् है, गच्छ नहीं । केअइगन्धहगव्विरअरंजिआदणेहि । कंठअसवलितणुतव छड्डिअभवलाणं ॥ ७११॥ प्रस्तुत पद्य में गाथा के लक्षणों का अभाव है। इसकी भाषा भी अपभ्रंश से प्रभावित है । अनेक अक्षर लिपिकर्ताओं के प्रमाद से छूट गये हैं और अनेक अक्षर अन्यथा लिख दिये गये हैं । इन दोनों दोषों के कारण छन्द की स्वाभाविक लय और अर्थावगति में अवरोध उत्पन्न हो गया है। यदि प्रथम पाद के अन्तमें 'णि' और जोड़ दें तो उसका पाठ इस प्रकार हो जायेगा केअइ गंधह गन्विणि, परन्तु इसे हम छन्द के अनुरोध से 'गविणी' पढ़ेंगे । चतुर्थपाद में प्रयुक्त द्दणेहिं निरर्थक है, यह संभवतः छणेहिं का विकृत रूप है। तृतीय पाद में 'ठ' के स्थान पर 'ट' होना चाहिये । कंठअ नहीं कंटअ ( कण्टक ) शब्द है। स का अनुस्वारच्युत हो गया है तथा शब्द का अन्तिम अकार भी नहीं रह गया है । यहाँ संवलिअ होना चाहिये । तणु को लय की दृष्टि से तणू पढ़ना होगा क्योंकि छन्द का पादान्तवर्ती वर्ण दीर्घ हो जाता है । कंटअ और संवलिअ शब्दों के मध्य में गण शब्द का निवेश कर देने पर यह पाद भी छन्द की दृष्टि से शुद्ध हो जायेगा। चतुर्थपाद में 'भ' के स्थान पर 'म' लिखना उचित है । अब सम्पूर्ण छन्द का संशोधित पाठ यह होगा३. केअइ गंधह गव्विणि, रअरंजिआ छह । कंटअगणसंवलिअतणु तव छड्डिअमबलाण ॥ केतकि ! गन्धेण गर्विणि रजोरञ्जिता क्षणैः। कण्टकगणसंवलिततनुस्तव त्यक्ताऽबलाभिः ॥ अबलाणं पद में 'क्वचिद् द्वितीयादेः' इस हैम सूत्र से तृतीया के स्थान पर षष्ठी हो गई है । तणु शब्द प्राकृत में स्त्रीलिंग और पुल्लिग-दोनों है । उपयुक्त छन्द के प्रथम और तृतीय पादों में १३ मात्रायें हैं । द्वितीय और चतुर्थ पादों में ग्यारह मात्रायें हैं । इस प्रकार यह लय और मात्राओं की दृष्टि से दोहा है । अन्तर केवल इतना है कि दोहे के द्वितीय और चतुर्थ पादों के अन्त में अन्त्यानुप्रास ( तुक ) होता है, इसमें नहीं है । संभव है, प्रारम्भ में ऐसे दोहे भी लिखे जाते रहे हों । अर्थ-हे केतकि ! तुम पराग से रंजित होकर क्षण भर में गविणी बन गई हो । अरे ! तेरा कंटकगणों से भरा शरीर अबलाओं (बलहीन या निर्बल For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002116
Book TitleGathasaptashati
Original Sutra AuthorMahakavihal
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size9 MB
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