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________________ प्रथमं शतकम् पसुवइणो रोसारुणपडिमासंकंतगोरिमहअन्दं । गहिअग्घपंकअं विअ संझासलिलञ्जलि णमह ॥१॥ [ पशुपते रोषारुणप्रतिमासंक्रान्तगौरीमुखचन्द्रम् । गृहीतार्घपङ्कजमिव संध्यासलिलाञ्जलिं नमत ॥] भगवान् शिव की उस सन्ध्या-सलिलाञ्जलि को नमस्कार कीजिये, जिसमें प्रतिबिम्बित होने पर गौरी का रोषारुण मुखचन्द्र अध्य-पद्म-सा प्रतीत होने लगता है ॥१॥ अमिश्र पाउअकव्वं पढिउं सोउं अ जे ण आणन्ति । कामस्स तत्ततन्ति कुणन्ति ते कह ण लज्जन्ति ॥२॥ [ अमृतं प्राकृतकाव्यं पठितुं श्रोतुं च ये न जानन्ति । कामस्य तत्त्वचिन्तां कुर्वन्तस्ते कथं न लज्जन्ते ॥] जो प्राकृत भाषा के अमृतमय काव्यों को पढ़ना-सुनना नहीं जानते, वे कामशास्त्र की चिन्ता करते हुए लज्जित क्यों नहीं होते ? ॥ २ ॥ सत्त सताई कइवच्छलेण कोडीअ मज्झआरम्मि । हालेण विरइआइं सालङ्काराण गाहाणं ॥३॥ [सप्तशतानि कविवत्सलेन कोटेमध्ये । हालेन विरचितानि सालङ्काराणां गाथानाम् ॥] कविवत्सल हाल ने कोटि गाथाओं से सात सौ अलंकृत गाथायें चुन कर इस ग्रंथ को बनाया है ॥ ३ ॥ उअ णिच्चलणिप्पन्दा भिसिणीपत्तम्मि रहइ बलाआ। हिम्मलमरगअभाअणपरिट्ठिआ संखसुत्ति व्व ॥४॥ [पश्य निश्चलनिःस्पन्दा बिसिनीपत्रे राजते बलाका। निर्मलमरकतभाजनपरिस्थितता शङ्खशुक्तिरिव ॥ ] देखो, वह बलाका कमलपत्र पर निश्चल एवं निस्पन्द होकर यो बैठी है जैसे नीलम के स्वच्छ पात्र पर शंख-शुक्ति रख दी गई हो ॥ ४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002116
Book TitleGathasaptashati
Original Sutra AuthorMahakavihal
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size9 MB
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