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द्वितीय शतकम् खेत में कोई काम न होने पर भी कृषक इसलिये लौट कर नहीं आता कि दिवंगता प्रिय पत्नी से शून्य गृह को देख कर उसे शोक होगा ॥ ६९ ॥ जझावाउत्तिण्णिअघरविवरपलोट्टसलिलधाराहि । कुडुलिहिओहिअहं रक्खइ अज्जा करअलेहि ॥ ७० ॥
[ झञ्झावातोत्तृणोकृतगृहविवरप्रपतत्सलिलधाराभिः।
कुडयलिखितावधिदिवसं रक्षत्यार्या करतलः।।] झंझावात से जिसकी फूस की छाजन उड़ गई है, उस घर में दीवार पर लिखी हुई परदेशी के आगमन की अवधि को, दोन विरहिणी अपने दोनों हाथों से ढक कर छिद्रों से चूती हुई जलधार से बचा रही है ॥ ७० ॥ गोलाणइए कच्छे चक्खन्तो राइआइ पत्ताई। उप्फडइ मक्कडो खोक्खएइ पोट्ट अ पिट्टेइ ॥ ७१ ॥ [ गोदावरी नद्याः कच्छे चर्वयन्राजिकायाः पत्राणि ।
उत्पतति मर्कटः खोक्खशब्दं करोत्युदरं च ताडयति ॥] गोदावरी की कछार में राई के पत्तों को चबाता हुआ बंदर कूदता हुआ *खोक्खो' शब्द कर अपना पेट पोट रहा है ॥७१ ॥ गहवइणा मुअसैरिहडुण्डुअदामं चिरं वहेऊण । वग्गसआई उण गवरिअ अज्जाघरे बद्धं ॥७२॥
[ गृहपतिना मृतसैरिभबृहद्धण्टादाम चिरमूढ्वा ।
वर्गशतानि नीत्वानन्तरमार्यागृहे बद्धम् ।।] के गृहस्वामी ने मृत भैसे के गले से पुरानी घंटी उतार कर रख दी। सैकड़ों भैंसों के झुण्ड में ले गया और अन्त में उसे भवानी के मंदिर में बाँध दिया ॥७२॥ सिहिपेहुणावअंसा बहुआ वाहस्स गव्विरी भमइ । गअमोत्तिअरइअपसाहणाणं मज्झे सवत्तोणं ॥ ७३ ॥ [ शिखिपिच्छावतंसा वाधस्य गविता भ्रमति।
गजमौक्तिकरचितप्रसाधनानां मध्ये सपत्नीनाम् ।। ] जिन्होंने गजमुक्ताओं से श्रृंगार किया था, उन सपत्नियों में मयूर-पुच्छ का आभूषण धारण करने वाली व्याघवध गर्व से फिरती है ।। ७३ ।।
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