________________
तीर्थंकर ( या जिन ) : ६५
,
सुव्रत, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर तथा कुछ अन्य तीर्थंकरों के पंचकल्याणकों और जीवन के कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण प्रसंगों का विस्तृत शिल्पांकन आबू तथा कुम्भारिया के मन्दिरों के वितानों पर देखा जा सकता है ।५९ वस्त्रों, ताड़पत्र तथा कागज पर भी जिनों का चित्रण हुआ है । भित्तिचित्रों में जिनों के अंकन के उदाहरण एलोरा सित्तनवासल तथा तिरुमलै जैसे स्थानों से प्राप्त होते हैं । ६° एलोरा में केवल ऋषभनाथ, अजितनाथ, सुपार्श्वनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ एवं महावीर तीर्थंकरों की ही मूर्तियाँ मिलती हैं। इनमें केवल अजितनाथ और महावीर के साथ सिंहासन पर लांछन हैं जबकि सुपार्श्वनाथ और पार्श्वनाथ की पहचान सर्पफणों के छत्र और ऋषभनाथ की पहचान कंधों पर लटकती जटाओं एवं नेमिनाथ की पहचान कुबेर यक्ष और अम्बिका यक्षी की आकृतियों के आधार पर की जा सकी है । यक्ष-यक्षी की आकृतियाँ मुख्यतः नेमिनाथ और पार्श्वनाथ के साथ ही दिखायी गयीं। कुछ उदाहरणों में महावीर एवं अन्य तीर्थंकरों के साथ नेमिनाथ के यक्ष-यक्ष कुबेर व अम्बिका की आकृतियाँ उकेरी गयी हैं ।
आगे के पृष्ठों में जैन महापुराण के आधार पर २४ तीर्थंकरों के पंचकल्याणकों (च्यवन, जन्म, दीक्षा, कैवल्य, निर्वाण ) एवं उनके जीवन से सम्बन्धित कुछ अन्य घटनाओं की विस्तारपूर्वक चर्चा हुई है और यथास्थान मूर्तं उदाहरणों के माध्यम से कला में उनकी अभिव्यक्ति को भी स्पष्ट किया गया है ।
(१) ऋषभनाथ ( या आदिनाथ ) :
कहा गया है जो एक ओर सम्बन्धित है । ज्ञातव्य है
आदिपुराण में ऋषभनाथ को वृषभदेव शिव और दूसरी ओर उनके वृषभ लांछन से कि ऋषभदेव का लांछन वृषभ है। वृषभदेव वर्तमान अवसर्पिणी काल के २४ तीर्थंकरों में आद्य तीर्थंकर हैं और इन्हीं से जैनधर्म का प्रारम्भ माना जाता है। आद्य तीर्थंकर होने के कारण ही इन्हें आदिनाथ भी कहा गया है ।
जैन पुराणों में इनके जीवन, तपश्चरण, केवलज्ञान व धर्मोपदेश के विस्तृत विवरण के साथ ही वैदिक साहित्य, जैनेतर पुराणों तथा उपनिषदों आदि में भी इनका उल्लेख हुआ है । " पउमचरिय में २४ तीर्थंकरों की वन्दना के प्रसंग में ऋषभनाथ को जिनवरों में वृषभ के समान श्रेष्ठ तथा सिद्ध-देव, किन्नर, नाग, असुरपति एवं भवनेन्द्रों के
५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org