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तीर्थकर (या जिन) : ५९ कल्पसूत्र, पउमचरिय, समवायांगसूत्र तथा भगवतीसूत्र में मिलती है ।१२ इस सूची में जिन २४ तीर्थंकरों के नाम मिलते हैं वे-ऋषभ, अजित, सम्भव, अभिनन्दन, सुमति, पद्मप्रभ, सुपार्श्व, चन्द्रप्रभ (शशिप्रभ), सुविधि (पुष्पदन्त या कुसुमदन्त ), शीतल, श्रेयांश, वासुपूज्य, विमल, अनंत, धर्म, शान्ति, कुन्थु, अर, मल्लि, मुनिसुव्रत, नमि, नेमि (या अरिष्टनेमि), पार्श्व एवं महावीर ( या वर्धमान ) हैं। इसी सूची को कालान्तर में अपरिवर्तित रूप में दोनों परम्पराओं में स्वीकार कर लिया गया । भगवतीसूत्र में मुनिसुव्रत, नायाधम्मकहाओ में नारी तीर्थंकर मल्लिनाथ13 एवं कल्पसूत्र में ऋषभ, नेमि ( अरिष्टनेमि), पार्श्व एवं महावीर के जीवन से सम्बन्धित घटनाओं के विस्तृत उल्लेख हैं। दिगम्बर परम्परा में तीर्थंकर से सम्बन्धित तथ्यों का प्राचीनतम संकलन प्राकृत भाषा के तिलोयपण्णत्ति में मिलता है।१५ प्रारम्भिक जैन ग्रन्थों में जहाँ २४ तीर्थकरों की सूची एवं उनसे सम्बन्धित अन्य उल्लेख प्राप्त होते हैं वहीं जिनमूर्तियों से सम्बन्धित उल्लेख केवल राजप्रश्नीय एवं पउमचरिय'" में हैं। मथुरा से केवल ऋषभ, सम्भव ९, मुनिसुव्रत२०, नेमि२१, पाव२२ एवं महावीर२३ तीर्थंकरों की कुषाणकालीन मूर्तियाँ प्राप्त होती हैं ।२४ तीर्थंकरों के लांछनों की कल्पना कब की गयी, यह प्रश्न भी यहाँ विचारणीय है।
वसुदेवहिण्डी (ल० छठी शती ई०) तथा दिगम्बर परम्परा के आरम्भिक प्रन्थ वरांगचरित ( जटासिंह नन्दी, ल० छठी शती ई० ), आदिपुराण व उत्तरपुराण, पद्मचरित तथा हरिवंशपुराण में तीर्थंकरों के लांछनों का अनुल्लेख गप्तकाल से तीर्थंकर मतियों में लांछन के अंकन के परिप्रेक्ष्य में सर्वथा आश्चर्यजनक है ।२५ किसी भी कुषाणकालीन जिन मूर्ति में लांछन नहीं दिखाया गया है। सर्वप्रथम वैभार पहाड़ी ( राजगिर ) से प्राप्त नेमिनाथ (चौथी-पांचवीं शती ई.) तथा वाराणसी से प्राप्त और भारत कला भवन (क्रमांक १६१ ) में सुरक्षित महावीर की गुप्तकालीन मतियों में क्रमशः शंख और सिंह लांछन का अंकन हुआ है।२६ उपरोक्त मतियों के आधार पर निश्चयात्मक रूप से यह कहा जा सकता है कि लगभग चौथी-पाँचवी शती ई० में तीर्थंकर मूर्तियों में लांछनों का अंकन आरम्भ हुआ। ल० आठवीं-नवीं शती ई० तक जिनों के लांछनों का निर्धारण हो गया था। तिलोयपण्णत्ति एवं प्रवचनसारो-- द्वार२९ में जिन लांछनों की प्राचीनतम सूची प्राप्त होती है ।३०
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