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________________ ५० : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन सन्दर्भ एलोरा, देवगढ़, खजुराहो तथा अन्य दिगम्बर स्थलों पर उनके मूर्त अभिव्यक्ति के अध्ययन की दृष्टि से विशेष महत्त्वपूर्ण हैं । ऋषभनाथ के विभिन्न नामों के सन्दर्भ में ब्रह्मा, विष्णु, शिव और बुद्ध आदि के नामों तथा गरुडा, सिंहवाहिनी, प्रज्ञप्ति, चाण्डाली, बहुरूपा, रोहिणी, गौरी, अच्युता, गान्धारी आदि विद्याओं के नाम स्पष्टतः पूर्ववर्ती पउमचरिय एवं हरिवंशपुराण से प्रभावित हैं । १६६ महापुराण की विद्यादेवियों में से अधिकांश १०वी-११वीं शती ई० तक १६ महाविद्याओं की सूची में सम्मिलित की गयीं। उपर्युक्त प्रमुख देवों के अतिरिक्त महापुराण में विभिन्न प्रसंगों में इन्द्र (जिनों के पंचकल्याणकों में एवं ताण्डव नृत्य ),६७ शिव, विष्णु, ब्रह्मा,१६८ वामनदेव,१६९ लक्ष्मी,१७० सरस्वती,७१ सूर्य,१७२ गंगा व सिन्धु देवी,१७3 कुबेर,१७४ दिक्कुमारी,१०५ भवनवासी, कल्पवासी, ज्योतिष्क तथा व्यन्तर देवों७६ और लौकान्तिक देवों१७७ एवं लोकपूजन से सम्बन्धित श्री, ह्री, धृति, बुद्धि, और कीति आदि देवियों के उल्लेख भी महत्त्वपूर्ण हैं जो जैन देवकुल की व्यापक और समन्वयात्मक अवधारणा को व्यक्त करते हैं। पाव-टिप्पणी १. मारुतिनन्दन तिवारी, जैन प्रतिमाविज्ञान, पृ० २९ । २. एम० विण्टरनित्ज, ए हिस्ट्री ऑव इण्डियन लिट्रेचर, खण्ड-२, कलकत्ता १९३४, पृ० ४३४ । ३. मारुतिनन्दन तिवारी, पू० नि०, पृ० २९ । ४. जे० सी० सिक्दर, स्टडीज इन दि भगवतीसूत्र, मुजफ्फरपुर १९६४, पृ० ३२-३८ । ५. आर० सी० शर्मा, 'आर्ट डेटा इन रायपसेणिय', सं० पु० प०, लखनऊ, अंक ९, पृ० ३८ । ६. अंगविज्जा, सं० मुनिपुण्यविजय, बनारस १९५७, पृ० ५७ । ७. एम० विण्टरनित्ज, पू० नि०, पृ० ४३३ ।। ८. समवायांगसूत्र १८; पउमचरिय १.१-२, ३८-४२ । ९. हस्तीमल, जैनधर्म का मौलिक इतिहास, खण्ड-१, जयपुर १९७१, पृ० ४६-४७ । १०. मारुतिनन्दन तिवारी, पू० नि०, पृ० ३० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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