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________________ जैन देवकुल : ४९ यक्ष के पूर्वजन्म की कथा भी दी है । १६० ब्रह्मशान्ति यक्ष केवल श्वेताम्बरों में ही लोकप्रिय थे ( चित्र २८ ) । उनके साथ जटामुकुट, छत्र, अक्षमाला, कमण्डलु तथा हंसवाहन का प्रदर्शन कभी ब्रह्मा और कभी वामन का प्रभाव दर्शाता है । १६१ कपर्दी यक्ष : १६३ यू० पी० शाह ने कपर्दी यक्ष को शिव से प्रभावित माना है । १६२ चतुर्विंशतिका में कप यक्ष का उल्लेख यक्षराज के रूप में हुआ है ।' इसके अतिरिक्त विविधतीर्थंकल्प एवं शत्रुंजयमाहात्म्य (धनेश्वसूरिकृत - ल० ११०० ई० ) में कपर्दी यक्ष का वर्णन विस्तार के साथ हुआ है । १६४ इनके मूर्त उदाहरण शत्रुंजय पहाड़ी एवं विमलवसही से प्राप्त होते हैं । कपर्दी यक्ष की लोकप्रियता श्वेताम्बरों तक ही सीमित थी । १६५ इस प्रकार स्पष्ट है कि ल० १२वीं १३वीं शती ई० तक जैन देवकुल पूरी तरह विकसित हो चुका था जिसमें न केवल विभिन्न देवताओं की अवधारणा वरन् उनके विस्तृत लक्षण भी नियत किये जा चुके थे और तद्नुरूप देवगढ़, खजुराहो, बिलहरी, खण्डगिरि, राजगिर, एलोरा जैसे दिगम्बर एवं ओसियाँ, देलवाड़ा, कुम्भारिया, तारंगा जैसे श्वेताम्बर स्थलों पर विभिन्न देव स्वरूपों का निरूपण हुआ । पूर्ण विकसित देवकुल में २४ तीर्थंकरों एवं उनके यक्ष-यक्षी युगलों, विद्यादेवियों तथा भरत, राम, कृष्ण, बलराम सहित ३९ शलाकापुरुषों, अष्टदिक्पालों, नवग्रहों, लक्ष्मी, सरस्वती, नैगमेषी, इन्द्र, ब्रह्मशांति एवं कपर्दी यक्ष और गणेश जैसे देवी-देवता सम्मिलित थे । साहित्य और शिल्प के आधार पर २४ तीर्थंकरों के बाद यक्षी, विद्यादेवी, लक्ष्मी, सरस्वती आदि के रूप में देवियों को ही सर्वाधिक प्रतिष्ठा दी गयी जो शक्ति और तान्त्रिक पूजन से प्रभावित प्रतीत होता है । जैन देवकुल के अध्ययन की दृष्टि से महापुराण की सामग्री की कुछ निजी विशेषताएँ रही हैं जो किन्हीं अर्थों में ९वीं - १०वीं शती ई० में जैन देवकुल के विकास के अनुरूप हैं । दिगम्बर परम्परा में २४ तीर्थंकरों के यक्ष-यक्षी युगलों का स्वतंत्र निरूपण १२वीं शती ई० में हुआ जो प्रतिष्ठासारसंग्रह में वर्णित है । संभवत: इसी कारण जैन महापुराण में २४ यक्षयक्ष युगलों का अनुल्लेख है । २४ तीर्थंकरों सहित ६३ शलाकापुरुषों के जीवन चरित का महापुराण में विस्तृत उल्लेख हुआ है । ६३ शलाकापुरुषों में २४ तीर्थंकरों, राम, बलराम, कृष्ण, भरत, बाहुबली आदि के ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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