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________________ प्रस्तावना : २५ समराइच्चकहा, तिलकमञ्जरी एवं बृहत्कथाकोष में मन्त्रवाद, विद्याधरों, विद्याओं एवं कापालिकों के वेताल साधनों की भी चर्चा है जिनकी उपासना से साधकों को दिव्य शक्तियों (विद्याओं) या मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती थी। ५ इनके अतिरिक्त तान्त्रिक प्रभाव में कई और जैन ग्रन्थों की भी रचना हई जिनमें ज्वालिनीमाता, ज्वालामालिनीकल्प, निर्वाणकलिका, प्रतिष्ठासारोद्धार, आचारदिनकर, भैरवपद्मावतीकल्प तथा अद्भुतपद्मावती इत्यादि मुख्य हैं । ६ परम्परागत जैन साहित्य और शिल्प में १६ महाविद्याएँ वस्तुतः तान्त्रिक देवियाँ ही हैं । ___ कोई भी रचनाकार, काल तथा समाज के प्रभाव से अपने को वंचित नहीं रख सकता। आदिपुराण के कर्ता जिनसेन के काल में दक्षिण भारत में ब्राह्मण तथा जैन धर्मों के मध्य संघर्षपूर्ण स्थिति बनी हुई थी। उसे ध्यान में रखते हुए जिनसेन ने ब्राह्मण धर्म के अनेक महत्त्वपूर्ण तथ्यों तथा क्रियाकाण्डों का जैनीकरण करने का प्रयास किया है। महापुराण में धर्म एवं संस्कृति के समन्वयात्मक उल्लेखों से यह बात स्पष्ट है। आदिपुराण में जिनसेन ने स्वाध्याय, उपवास आदि तप तथा व्रतधारण रूपी संयम को ब्राह्मणों का कुलधर्म बताया है। इस दृष्टि से १६ संस्कारों एवं ४ वर्णों के उल्लेख भी महत्त्वपूर्ण हैं । किन्तु ब्राह्मण व्यवस्था से प्रभावित होने पर भी जिनसेन ने आदिपुराण में जैन सांस्कृतिक तत्त्वों को बनाये रखा। जिनसेन तथा गुणभद्रकृत महापुराण में २४ तीर्थंकरों, १२ चक्रवर्ती, ९ बलदेव, ९ नारायण, ९ प्रतिनारायण सम्बन्धित विभिन्न घटनाओं एवं अनेक देवी-देवताओं तथा सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का विस्तृत वर्णन हआ है। आदिपुराण में जिनसेन ने प्रथम तीर्थंकर वृषभदेव तथा उनके पुत्र भरत चक्रवर्ती का जैसा वर्णन किया है वह वैदिक मन्त्रों, जेनेतर पुराणों तथा उपनिषदों में भी मिलता है। भागवत् में भी मरुदेव, नाभिराज, वृषभदेव एवं उनके पुत्र भरत का विस्तृत वर्णन मिलता है। केवल घटनादि तथा अन्य सन्दर्भो में दोनों में भिन्नता देखी जा सकती है ।१० आदिपुराण में इन्द्र ने वृषभदेव के कैवल्य प्राप्ति के बाद १००८ नामों से जिस प्रकार उनकी स्तुति की है उनमें अनेक नाम शिव, विष्णु, ब्रह्मा एवं बुद्धादि से सम्बन्धित हैं ।९१ इसी प्रकार आदिपुराण तथा उत्तरपुराण में जिनसेन व गुणभद्र ने विभिन्न विद्याधरों तथा उनकी विद्याओं का उल्लेख किया है जो स्पष्टतः तन्त्रवाद से प्रभावित है ।९२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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