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२२ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन
तपस्या और पूर्वजन्म के बैरी कमठ द्वारा किये गये उपसर्गों का विस्तृत उल्लेख हुआ है। धवला तथा जयधवला दोनों ही ग्रन्थ राष्ट्रकूट नरेश अमोघवर्ष (प्रथम ) के समय में लिखे गये थे। अमोघवर्ष का एक और नाम 'धवल' या 'अतिशयधवल' भी था । अतः अनुमान है कि इन ग्रन्थों का नामकरण अमोघवर्ष के नाम को चिरस्थायी करने के लिए किया गया होगा । गुणभद्र की रचनाओं में उत्तरपुराण के अतिरिक्त आत्मानुशासन एवं जिनदत्तचरित्र का भी उल्लेख मिलता है । आत्मानुशासन भर्तृहरि की वैराग्यशतक की शैली में लिखा हुआ २७२ पद्यों का एक सुन्दर ग्रन्थ है।६८ जिनदत्तचरित्र एक नवसर्गात्मक छोटा काव्य ग्रन्थ है। अनुष्टुप श्लोंकों में रचित इस ग्रन्थ की कथा बड़ी ही कौतुकावह है ।६९ सांस्कृतिक पृष्ठभूमि :
किसी भी धर्म या सम्प्रदाय के विशिष्ट साहित्य का अध्ययन करने के लिये उस युग की राजनीतिक, धार्मिक तथा साहित्यिक परिस्थितियों का विश्लेषण आवश्यक हो जाता है। कोई भी ग्रन्थकार अपने युग के वातावरण से अप्रभावित नहीं रह सकता या दूसरे शब्दों में राजनीतिक एवं सांस्कृतिक स्थितियाँ किसी भी देश की कला एवं साहित्य की नियामक होती हैं । साहित्यिक अभिव्यक्ति अपनी विषय-वस्तु एवं निर्माण विधा में समाज की धारणाओं एवं तकनीकों का प्रतिबिम्ब प्रस्तुत करती है जो उसी संस्कृति का अंग होती हैं। कला के सम्बन्ध में कुमारस्वामी ने लिखा है कि भारतीय कला लोगों को धार्मिक मान्यताओं का ही मूतं रूप रही है। समस्त भारतीय कला पूर्व परम्पराओं के निश्चित निर्वाह के साथ ही धर्म एवं सामाजिक धारणाओं में हुए परिवर्तनों से भी सदैव प्रभावित होती रही है।७० ठीक यही बात किसी भी युग के साहित्य के सम्बन्ध में भी चरितार्थ होती है। ग्रन्थकार को जो विचारधारा परम्परा से मिली है उसका प्रतिबिम्ब उसके साहित्य में आये बिना नहीं रह सकता। अतः जिस समय जिनसेन व गुणभद्र कृत महापुराण की रचना हुई उस समय की राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक पृष्ठभूमि की संक्षिप्त विवेचना यहाँ आवश्यक हो जाती है । (क) राजनीतिक
मध्यकाल में मालवा, राजस्थान, उत्तरी गुजरात तथा दकन के कर्नाटक जैसे प्रान्तों में जैनधर्म का अच्छा समादर था तथा साहित्यिक
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