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________________ २२ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन (II) विद्यमान थे और उन्होंने तब तक पार्श्वजिनेन्द्रस्तुति तथा वर्धमानपुराण नामक दो ग्रन्थों की रचना भी कर ली थी । 43 किन्तु जिनसेन की जयधवला टीका के अन्तिम भाग तथा महापुराण जैसी सुविस्तृत और महत्त्वपूर्ण कृतियों का हरिवंशपुराण के कर्त्ता जिनसेन (I) ने कोई उल्लेख नहीं किया है जिससे यह आभासित होता है कि महापुराण जिनसेन (II) की परवर्ती काल की रचना थी । ५४ हरिवंश - पुराण में वर्णित प्रारम्भिक रचनाओं के समय आदिपुराण के कर्त्ता की आयु कम से कम २५-३० वर्ष अवश्य रही होगी । हरिवंशपुराण के अन्त में दी गई प्रशस्ति में उसका रचनाकाल शकसंवत् ७०५ ( ७८३ ई० ) बताया गया है । हरिवंशपुराण की रचना आरम्भ करते समय आदिपुराण के कर्ता जिनसेन (II) की आयु यदि २५ वर्ष रही होगी तो उनका जन्म शकसंवत् ६७५ ( ७५३ ई० ) के आसपास ही हुआ होगा । ५५ 1 जयधवला टीका की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि जिनसेन ( II ) ने अपने गुरु वीरसेन की वीरसेनीया टीका शकसंवत् ७५९ ( ८३७ ई० ) में पूर्ण की थी। इससे सिद्ध होता है कि जिनसेन ( II ) ८३७ ई० तक विद्यमान थे । १६ जिनसेन ( II ) से पाश्व भ्युिदय से यह भी ज्ञात होता है कि वह राष्ट्रकूट नरेश अमोघवर्ष ( प्रथम ) के राज्यकाल (८१४-८७८ ई०) में थे । उसके दरबार में अनेक हिन्दू तथा जैन विद्वान थे जिनमें आदिपुराण के कर्त्ता जिनसेन भी एक थे । १७ हीरालाल जैन ने इस बात का उल्लेख भी किया है कि राष्ट्रकूट नरेश अमोघवर्षं जिनसेन के चरणों की पूजा करता था । १८ ए० डी० पुसालकर ने इस बात की पुष्टि की है कि अमोघवर्ष प्रथम एक हिन्दू की अपेक्षा जैन अधिक था और जिनसेन उसका प्रमुख धर्मोपदेशक था । उसने गुणभद्र को अपने पुत्र कृष्ण द्वितीय के लिये एक उपदेशक के रूप में नियुक्त किया था । नाथूराम प्रेमी के अनुसार जिनसेन का जन्म शकसंवत् ६८५ ( ७६३ ई० ) में अनुमानित किया गया है । जयधवला टीका उन्होंने शकसंवत् ७५९ में पूर्ण को अतः उस समय उनकी अनुमानित आयु ७४ वर्ष रही होगी । सम्भवतः जयधवला के बाद हो उन्होंने आदिपुराण आरम्भ किया जिसे वह पूरा नहीं कर सके । आदिपुराण की दस हजार श्लोकों की रचना में कम से कम उन्हें ५-६ वर्षं अवश्य लगे होंगे और इस प्रकार शकसंवत् ७६५ ( ८४३ ई० ) के लगभग ८० वर्ष की आयु में उनका स्वर्गवास हुआ होगा । , आदिपुराण के ४२ पर्व पूर्ण तथा ४३ वें पर्व के तीन श्लोकों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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