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२६८ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन
महापुराण के चित्रों में सर्वप्रथम महावीर के शिष्य गौतम गणधर के समीप श्रेणिक के आने और उनसे महापुराण की कथा सुनाने का आग्रह करने का चित्रांकन हुआ है। इन चित्रों में ऋषभनाथ के मातापिता नाभिराज एवं मरुदेवी को वार्तालाप की मुद्रा में, शय्या पर लेटी हुयी मरुदेवी तथा ऋषभ जन्म के पूर्व मरुदेवी द्वारा देखे गये १६ मांगलिक स्वप्नों का अंकन भी हुआ है। यह उल्लेखनीय है कि मांगलिक स्वप्नों के क्रम को चित्रों में परिवर्तित कर दिया गया है और चतुर्भुजा लक्ष्मी के गजों द्वारा अभिषिक्त होने का अंकन नहीं किया गया है। पद्मासीन देवी के दो हाथों में पद्म व दो में कलश हैं। नागेन्द्र भवन को नागद्वय की उपस्थिति द्वारा दर्शाया गया है।
अगले चित्रों में मरुदेवी को नाभिराज से स्वप्नों का फल पूछते, ऋषभजन्म, इन्द्र के इन्द्राणी सहित पृथ्वी पर ऋषभ के जन्मकल्याणक हेतु आगमन, सुमेरुपर्वत पर ऋषभ के जन्मकल्याणक, दीक्षा के पूर्व ऋषभ द्वारा केश लंचन एवं इन्द्र द्वारा उसका संचय ( केश लंचन के समय ऋषभ निर्वस्त्र), ऋषभ की कायोत्सर्ग में तपश्चर्या, कैवल्य प्राप्ति के बाद ऋषभ के धर्मोपदेश आदि का चित्रांकन महत्त्वपूर्ण है। __ ऋषभ के जीवन से सम्बन्धित चित्रों के पश्चात् भरत के प्रसंग को ही सर्वाधिक विस्तार के साथ चित्रित किया गया है। इसमें कई अलगअलग चित्रों में भरत के दिग्विजय को विस्तारपूर्वक दिखाया गया है जिनमें विभिन्न शासकों के साथ हो उनके अनुजों को भी भरत की अधीनता स्वीकार करते दरशाया गया है । तत्पश्चात् दीक्षा के अनन्तर भरत को मुनिवेष में दिखाया गया है। एक चित्र में भरत के समक्ष चक्ररत्न के प्रकट होने तथा भरत और बाहुबली के बीच जल एवं मल्लयुद्ध का सुन्दर अंकन हुआ है। परली (सवाचश्म) आँखों वाली इन आकृतियों में बाहुबली कृष्ण वर्ण हैं जिन्हें एक चित्र में भरत को दोनों हाथों से सिर के ऊपर उठाये और भूमि पर पटकने की मुद्रा में दिखाया गया है। इस दृश्य में अपनी आसन्न पराजय से भयभीत भरत द्वारा चलाये गये चक्र को बाहुबली की ओर आते हुए भी उत्कीर्ण किया गया है । इन चित्रों में कुछ अन्य उपकथा प्रसंगों को भी चित्रित किया गया है । ये चित्र १६वीं शती ई० में आदिपुराण की विशेष लोकप्रियता तथा उसके कुछ विशिष्ट कथा प्रसंगों ( भरत-बाहुबलो ) के महत्त्व को प्रकट करते है । स्मरणीय है कि आदिपुराण में भी पंचकल्याणकों के बाद भरत और बाहुबला के कथा प्रसंग का ही सर्वाधिक विस्तारपूर्वक वर्णन
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