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परिशिष्ट
जैन महापुराण पोथीचित्र
प्रस्तुत पुस्तक में जैन महापुराण के पोथीचित्रों का संक्षिप्त अध्ययन भी अपेक्षित है । इन पोथीचित्रों का विभिन्न पौराणिक विषयों के चित्रण के साथ हो तत्कालीन सांस्कृतिक जीवन एवं चित्र शैली के अध्ययन की दृष्टि से मी महत्त्व रहा है । चित्रकला के विकास में जैन शैली का कुछ निजत्व रहा है जिसे पश्चिम भारतीय या अपभ्रंश शैली कहा गया है । हमें मुख्य रूप से कल्पसूत्र, कालकाचार्यकथा, महापुराण, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, उत्तराध्ययनसूत्र, नेमिनाथचरित्र, कथारत्नसागर जैसे महत्त्वपूर्ण जैन ग्रन्थों की सचित्र प्रतियाँ विभिन्न क्षेत्रों से मिली हैं जिनका अध्ययन रामकृष्ण दास', मोतीचन्द्र, डब्ल्यू० एन० ब्राउन, सरयू दोशी, डगलस बैरेट' प्रभृति विद्वानों ने किया है । महापुराण के अतिरिक्त अन्य सभी जैन पोथीचित्र श्वेताम्बर परम्परा से सम्बन्धित हैं । इस दृष्टि से दिगम्बर परम्परा के महापुराण के पोथीचित्रों का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। जैन महापुराण के पोथीचित्र का विस्तृत अध्ययन मुख्यतः सरयू दोषी द्वारा किया गया है जिनमें केवल आदिपुराण से सम्बन्धित विषय ही चित्रित हैं । आदिपुराण और महापुराण के पोथीचित्र १४४० ई०, १४५०-७५ ई० तथा १५४० ई० के हैं । इन पोथीचित्रों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण दिल्ली के समीपवर्ती पालम का १५४० ई० का महापुराण शीर्षक पोथीचित्र है जो हुमायूँ पर शेरशाह के विजयवर्ष ( १५४० ई० ) में बना और वर्तमान में जयपुर के बड़े दीवानजी दिगम्बर मन्दिर में सुरक्षित है । १६वीं शती ई० की चित्रशैली के अध्ययन की दृष्टि से विशेष महत्त्वपूर्ण होने के साथ ही आदिपुराण के विभिन्न कथा प्रसंगों के विस्तृत चित्रांकन और तत्कालीन सामान्य जन-जीवन एवं काव्यात्मक अलंकारों आदि के अंकन की दृष्टि से भी यह विशेष महत्त्वपूर्ण है । चौर-पंचाशिका शैली में बने महापुराण के चित्रों को सामान्यतया विद्वानों ने दिल्ली-ग्वालियर क्षेत्र में बना स्वीकार किया है जिसमें चित्रकला की पश्चिम भारतीय अथवा अपभ्रंश शैली देखी जा सकती है ।
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