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उपसंहार : २६५ महापुराण में नृत्य से सम्बन्धित उल्लेख विशेषतः महत्त्वपूर्ण हैं। आदिपुराण में नत्य के समय विभिन्न वेश धारण करने और कटाक्ष, कपोलों, पैरों, हाथों, मुख, नेत्रों, अंगराज, नाभि, कटिप्रदेश तथा मेखलाओं द्वारा भाव का प्रदर्शन करने का उल्लेख हुआ है । नृत्य में रस, भाव, अनुभाव एवं चेष्टाओं का होना परम आवश्यक है। आदिपुराण में नृत्य की विभिन्न मुद्राओं के सन्दर्भ में मन्द-मन्द मुस्कान से देखते हए भौहों के संचालन, स्तन कम्पन, मन्थर गति, स्थूल नितम्ब के विभिन्न मुद्राओं में प्रदर्शन, भुजाओं के संचालन, कटि हिलाने, शरीर के नाभि आदि अवयवों के प्रदर्शन, पृथ्वी तल छोड़ कर नृत्य करने, नृत्य की विभिन्न मुद्राओं के शीघ्रता से परिवर्तन, नृत्य द्वारा केश-पाश प्रदर्शन, स्पन्दन, गायन के साथ, कटाक्ष एवं हाव-भाव के साथ, पुष्प एवं स्वर्ण के धटों को सिर व पैर पर रखकर, नेत्रों द्वारा, विभिन्न रूप धारण करके एवं एक भुजा पर नर्तकी तथा दूसरे पर नर्तक को नृत्य कराते हुए स्वयं नत्य करने के अनेक उदाहरण उपलब्ध हैं। नृत्य के साथ वीणा, पूष्कर, बाँसुरी, झाँझ, नगाड़े, दुन्दुभि, झल्लरी, काहल, ताल, मृदंग, पणव, दर्दुर तथा विपंची आदि वाद्यों का उल्लेख मिलता है। एलोरा की जैन गफा सं० ३० में शिव की नटेश मूर्तियों के समान कुछ नृत्यरत मूर्तियाँ भी बनी है। एक उदाहरण में दो पुरुष आकृतियों को शिव आकृति के समान एक पैर उठाकर अत्यन्त गतिशील रूप में नृत्यरत दिखाया गया है । ये नृत्य मुख्यतः विभिन्न अप्सराओं ( नीलांजना) एवं इन्द्र द्वारा किये गये थे। जैन पुराणों में शिव के स्थान पर इन्द्र द्वारा विभिन्न नल्यों का किया जाना ध्यातव्य है। कई नृत्य लोक शैली के नृत्य प्रतीत होते हैं।
पाव-टिप्पणी
१. आदिपुराण २३.२५-७३; उत्तरपुराण ५४.२३१; ५९.४४-४७ । २. आदिपुराण ३७.७३-७४, ८३-८४ । ३. आदिपुराण १२.६९-७६, ८५; १३.४७; १४.२०; २२.१८-२२ । ४. आदिपुराण २३.१६३ । ५. आदिपुराण ३६.१६४-७६ । ६. आदिपुराण ३६. १८३ ।
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