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________________ सांस्कृतिक जीवन : २४१ कठौता ), स्थाली ३२२ ( हण्डे - भोजन बनाने के विशालपात्र ) तथा कर्केरिका ३२३ ( जल रखने का झारी जैसा पात्र | आदिपुराण में चालिन २४ ( आटा चालने की चलनी ) का भी उल्लेख हुआ है । विवाह तथा अन्य कार्यों में प्रयुक्त होने वाले सुवर्ण के पाट एवं चौकी का भी उल्लेख महापुराण में है । 934 देलवाड़ा और कुंभारिया के जैन मन्दिरों में तीर्थंकरों के अभिषेक एवं नेमिनाथ के विवाह के प्रसंग में विभिन्न प्रकार के घटों का अकन हुआ है । उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि महापुराण में केवल तीर्थंकरों एवं उनके यक्ष-यक्षियों के विवरण ही नहीं वरन् तत्कालीन सांस्कृतिक जीवन सम्बन्धित विविध पक्षों का भी विस्तार से निरूपण हुआ है । कदाचित् जीवन का कोई ऐसा पक्ष रहा हो जिसका महापुराण में उल्लेख न हुआ हो । पाव - टिप्पणी १. कमल गिरि, भारतीम शृंगार, वाराणसी १९८७, पृ० ४ । २. शाङ्खायन गृह्यसूत्र ४, १५, अथर्ववेद १९.४४.१ । ३. उत्तरपुराण ६२.२९ । ४. उत्तरपुराण ६८.२२५ । ५. उत्तरपुराण ६३.४६२, ४५८ । ६. भोगभूमि ऐसा काल था जिसमें मनुष्यों के मनोवांछित वस्त्राभूषणों की पूर्ति कुछ विशेष वृक्षों द्वारा होती थी । ७. आदिपुराण ९. १४-४२ । ८. सी० शिवराममूर्ति, स्कल्पचर इन्स्पायर्ड बाई कालिदास, मद्रास यू० पी० शाह, जैन रूपमण्डन, पृ० ७१ । ९. उत्तरपुराण ६१.१२४; ६३.४१५ । आर० एस० गुप्ते एवं बी० डी० महाजन, अजन्ता एलोरा ऐण्ड औरंगाबाद केन्स, बम्बई १९६२, वि० सं० १३८ । १०. इन्द्रमणि के दो भेद बताये गये हैं । एक महाइन्द्रमणि जो हल्के और गहरे नीले रंग की होती थी, दूसरी इन्द्रनीलमणि जो हल्के नीले रंग की होती थो । ११. हरिवंशपुराण २.७, ८, ९, १०, ५४, ७.७२, ७३; उत्तरपुराण ६८.६७६; आदिपुराण ३५.४२ । १२. आदिपुराण १४.१४; ७.२३१; १३.१५४, १३८, १३६ । १६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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