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________________ २४० : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन (१२) सामूहिक नृत्य303 : इस नृत्य में अनेक व्यक्ति संयुक्त रूप से एक ही भाव, अनुभाव, रस एवं चेष्टाओं के साथ नृत्य करते थे। यह नृत्य सामूहिक रूप से घेरा बनाकर किया जाता था। __(१३) सूची नृत्य30४ : इस नृत्य में नर्तकी, नर्तक के हाथों की अंगुलियों पर नृत्य करती थी। (१४) नीलांजना नृत्य : आदिपुराण में नीलांजना के नृत्य को देखकर तीर्थंकर ऋषभदेव को वैराग्य उत्पन्न होने का उल्लेख है।३०५ (१५) मयूर नृत्य३० : आदिपुराण में मयूर का रूप धर कर नृत्य करने का उल्लेख है जो आधुनिक काल की भाँति उस समय भी मयूर नृत्य के प्रचलन की और संकेत करता है। ___ जैन पुराणों में उल्लिखित संगीत व नृत्य के मूर्त उदाहरण हमें विभिन्न जैन मन्दिरों व गुफाओं की मूर्तिकला और चित्रकला में भी देखने को मिलते हैं। एलोरा ( गुफा सं० ३१ ) में नृत्यरत अप्सराओं के चित्र इस दृष्टि से विशेष उल्लेखनीय हैं ।30७ इसी प्रकार विमलवसही के (माउण्ट आबू, १२वीं शती ई० ) सभामण्डप के वितान पर विभिन्न नृत्यांगनाओं के साथ चतुर्भुजी अम्बिका एवं कुबेर दिक्पाल के अंकन में नृत्य की विभिन्न मुद्राएँ स्पष्टतः देखी जा सकती हैं ।३०८ वैनिक उपयोग के पात्र आदि : महापुराण में मिट्टी, स्वर्ण, चाँदी, ताम्र आदि के विभिन्न बर्तनों का उल्लेख मिलता है जिनका पाकशाला तथा अन्य कार्यों के लिये प्रयोग किया जाता था। महापुराण में वर्णित है कि अन्तिम कुलकर नाभिराज ने स्वयं सर्वप्रथम मिट्टी के अनेक प्रकार के पात्र बनाकर दिये थे। उन्होंने पात्र बनाने का उपदेश भी दिया था। ३०९ यहाँ यह उल्लेखनीय है कि प्रारम्भ में मिट्टी के ही बर्तनों का प्रयोग किया गया और क्रमशः बाद में विभिन्न धातुओं का प्रयोग विभिन्न पात्रों के निमित्त हुआ । जैन पुराणों से प्राप्त सामग्रियों के आधार पर उस समय निम्नलिखित पात्रों के प्रयोग का उल्लेख मिलता है-पिठर१० ( बटलोई या मटका), स्थाली ११ (थाली), चाषक3१२ ( कटोरा), सूर्प3 १3 ( अनाज से कूड़ा साफ करने का पात्र ), कलश3१४ ( जल भरने का घड़ा), भुंगोर३१५ (झारी या सागर), उष्ट्रिका3१६ ( कड़ाहा या कड़ाही ), पार्थिवघट:१७ (मिट्टी का घड़ा), करक3१८ ( करवा), स्वर्ण कुम्भ3१९, शुक्ति आकृतिपात्र३२० ( सीप के आकार के पात्र ), कुण्ड३२१ ( पत्थर का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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