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________________ २१६ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन स्वर्ण, रजत, विभिन्न रत्नों, मणियों एवं पुष्पों आदि का प्रयोग होता था । स्त्रियों व पुरुषों दोनों दोनों में कर्णाभूषण का समानरूप से प्रचलन था । केवल उनके आकार-प्रकार में भिन्नता दिखायी देती है । स्त्रियों के कर्णाभूषणों में विविधता भी दिखायी देती है । पुरुष सामान्यतया कुण्डल धारण करते थे जबकि स्त्रियां कर्णफूल, कुण्डल, कनककमल व अवतंस पहनती थीं । कर्णाभूषण का निर्माण पत्रांकुर, छोटो पत्तियों, पुष्पों व हाथी दांत से भी होता था । " जैन पुराणों में कर्णाभूषणों के विभिन्न प्रकारों का सन्दर्भ मिलता है । (क) कुण्डल - कुण्डल अति लोकप्रिय कर्णाभूषण था । आदिपुराण में कपोलों तक लटकने वाले व मकर की आकृति से चिन्हित रत्नमयी कुण्डलों का उल्लेख है । 33 राजकुल के शिशुओं को भी मणिमय कुण्डल पहनाये जाते थे । सामान्य स्त्रियाँ कर्णमणियों से बने हुए कुण्डल पहनती थीं । ३४ केवल साहित्य में ही नहीं, मूर्त उदाहरणों में भी ऐसे कर्णाभूषणों के उदाहरण मिलते हैं । देवगढ़ की सर्वानुभूति यक्ष ( १०वीं शती ई० ) की आकृति के कानों में इस प्रकार के कुण्डल देखे जा सकते रत्न एवं मणिजटित कुण्डल के विभिन्न नामों के उल्लेख जैन हैं । पुराणों में मिलते हैं, उदाहरणार्थं मणिकुण्डल, रत्नकुण्डल, मकराकृत कुण्डल, कुण्डली, मकरांकित कुण्डल आदि । समराइच्चकहा ७, यशस्तिलक 3 एवं अजन्ता की चित्रकला में इनके उल्लेख और अंकन मिलते हैं । に 3% (ख) अवतंस -- पुराणों में पुष्पों एवं कोमल पत्तों से बने अवतंस के उदाहरण मिलते हैं । पद्मपुराण में इसके लिये चंचलावतंस नाम आया है | कुमारसम्भव में शिव के पीछे चलती हुई स्त्रियों के कर्णावतंस हिलते हुए बताये गये हैं । ४० सम्भवतः यह वर्तमान झुमके जैसा लटकता कर्णाभूषण था । (ग) कर्णफूल ४१ --- अधिकांश स्त्रियाँ कर्णफूल ही धारण करतीं थीं । हर्षचरित में राजाओं द्वारा कर्णफूल पहनने का उल्लेख है । ४२ आदिपुराण में स्वर्ण के अतिरिक्त पत्तों व धान की बालियों से निर्मित कर्णफूल का भी उल्लेख है जिन्हें स्त्रियाँ धारण करती थीं । ४३ कण्ठाभूषण : स्त्री व पुरुष दोनों ही गले में विभिन्न प्रकार के आभूषण धारण करते थे । गले में धारण करने वाले आभूषणों की प्राचीनता हड़प्पा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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