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अन्य देवी-देवता : १९९ सुवर्णमय कोट होता था। यह कोट मोती, मूगा व पद्मरागमणियों से जटित एवं कल्पलताओं आदि से चित्रित होता था। कोट के चारों दिशाओं में रजत निर्मित चार बड़े-बड़े ऊँचे शिखरों व तीन खण्ड वाले गोपुरद्वार होते थे। इन गोपुरद्वारों पर भृगार, कलश और दर्पण आदि एक सौ आठ मंगल द्रव्य शोभित होते थे। ये द्वार आभूषणों से युक्त सौ-सौ तोरणों और पास में रखे ९ निधियों से युक्त होते थे । ६७ ।।
प्रत्येक दिशाओं के गोपुरद्वार के भीतरी मार्ग में दो-दो नाट्यशालाएँ होती थीं जो तीन खण्डों की होती थीं। इनमें देव कन्यायें नृत्य करती थीं। नाट्यशाला से कुछ आगे चलकर दो धूपघट होते थे। धपघटों से कुछ आगे चलकर मुख्य गलियों के बगल में अशोक, सप्तपर्ण, चम्पक व आम के वृक्षों व पुष्पों से युक्त चार-चार वनवीथियाँ होती थीं। उन वनों के भीतर कहीं त्रिकोणात्मक और कहीं चौकोर बावड़ियाँ होती थीं। इन वनों में कहीं कमलों से युक्त छोटे-छोटे तालाब, कहीं कृत्रिम पर्वत, कहीं दो-तीन खण्डों के मनोहर महल, कहीं क्रीड़ा मण्डप और कहीं अजायबघर बने होते थे।६९ अशोक, सप्तपर्ण, चम्पक व आम्र वृक्षों के स्वामी उसी जाति के चैत्य वृक्ष होते थे जिनके मूल भाग में जिनेन्द्रदेव की चार प्रतिमाएँ होती थीं। सम्भवतः इन वृक्षों के मूल भाग में जिनेन्द्र की प्रतिमा स्थापित होने के कारण ही इन्हें चैत्य वृक्ष के नाम से सम्बोधित किया गया।
वन के अन्त में चारों ओर एक-एक सुवर्णमयो व रत्न जटित वन वेदी होती थी। इस वन वेदी के गोपुरद्वार चांदी के बने हुए तथा अष्टमंगल द्रव्य, संगीत, वाद्य, नृत्य व रत्नमय तोरणों से सुशोभित होते थे । इन् वेदिकाओं के आगे सुवर्णमय स्तम्भों के अग्रभाग पर माला, वस्त्र, मयर, कमल, हंस, गरुड़, सिंह, वृषभ, गज और चक्र से चिन्हित ध्वजाओं की पंक्तियाँ होती थी। प्रत्येक दिशा में एक ही प्रकार की १०८ ध्वजाएँ होती थीं। चारों दिशाओं में कुल चार हजार तीन सौ बीस ध्वजायें होती थीं।७१ इन ध्वजाओं के उपरान्त पूर्ववत् चाँदी का बड़ा कोट होता था जो गोपुरद्वारों, नौ निधियों, नाट्यशालाओं, धूपघट व कल्पवृक्षों के वन से सुशोभित होता था ।७२
कोट के गोपुरद्वारों के भीतर की ओर सुवर्ण व चन्द्रकान्तमणियों से निर्मित और अनेक प्रकार के रत्नों से चित्रित दो-तीन-चार अट्टालिकाओं व शिखरों से युक्त मकानों की पंक्तियाँ होती थीं । महाविथियों के
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