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________________ अन्य देवी-देवता : १९७ किया जाता था ।४७ दिगम्बर जैन परम्परा में 'मानक स्तम्भ' अथवा 'मानवस्तम्भ' नाम से सम्बोधित स्तम्भ की प्रथा थी।४८ ___ जैन पुराणों के अनुसार जैन मंदिर नृत्य व संगीत की प्रस्तुति के भी स्थल थे।४९ जैन मंदिरों में रंगमण्डप इसी उद्देश्य की पूर्ति करते थे। हरिवंशपुराण में मंदिरों में छत्र, चामर, भुंगार, कलश, ध्वज, दर्पण, पंखा और टोराइन इन आठ मांगलिक वस्तुओं का भी उल्लेख है।५० समवसरण : समवसरण एक देव निर्मित सभागार है जहाँ कैवल्य प्राप्ति के पश्चात् प्रत्येक जिन अपना पहला उपदेश देते हैं और देवता, मनुष्य एवं परस्पर शत्रु भाव वाले वन्य प्राणी आपस का वर-भाव भूलकर उस उपदेश का श्रवण करते हैं । ५१ महापुराण के अनुसार समवसरणों का निर्माण इन्द्र ने किया था। सातवीं शती ई० के बाद जैन ग्रन्थों में जिन समवसरणों के विस्तृत उल्लेख हैं ।५२ आदिपुराण में उल्लेख है किइसमें समस्त सुर-असुर आकर दिव्य ध्वनि के अवसर की प्रतीक्षा करते हुए बैठते हैं इसलिये गणधर आदि देवों ने उसको 'समवसरण' जैसा सार्थक नाम दिया। __ जैन पुराणों में समवसरण की रचना का विस्तार के साथ वर्णन मिलता है ।५४ सूर्यमण्डल की भाँति वर्तुलाकार रचना, एक ऐसी वास्तुकृति के सदृश है जिसे विशाल सोद्यान-प्रेक्षागृह कह सकते हैं किन्तु इसका प्रसार बारह योजन होता था ।५५ समवसरण के निर्माण विधि का सुन्दर, भव्य एवं विस्तृत वर्णन पद्मपुराण५६, हरिवंशपुराण५७ और आदिपुराण में मिलता है। इनमें समवसरण सम्बन्धी सामान्य भमि. सोपान, वीथि, धुलिशाल, चैत्यप्रासाद, नृत्यशाला, मानस्तम्भ, स्तुप, मण्डप तथा गंधकुटी आदि के विन्यास, प्रमाण एवं आकार आदि का वर्णन हुआ है। समवसरण की रचना लगभग १२ योजन आयाम में सूर्यमण्डल के सदश गोलाकार होती है । समवसरण की भूमि स्वाभाविक भूमि से एक हाथ ऊँची, कमल के आकार की तथा इन्द्रनील मणि से निर्मित होती थी । समवसरण का पीठ इतना ऊँचा होता था कि वहाँ तक पहुँचने के लिये चारों दिशाओं में एक-एक हाथ ऊँचो दो सौ सीढ़ियाँ होती थीं। इस भूमि के चारों महादिशाओं में चार महावीथियाँ होती थीं।५९ ___ इसके चारों ओर धूलिशाल होता था जिसकी तुलना चहारदीवारी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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