SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 205
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९२ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन है ।२० विभिन्न कालों में राजकीय एवं राजेतर लोगों के संरक्षण, प्रोत्साहन व प्रश्रय के फलस्वरूप ही जैनधर्म व कला का समुचित विकास देखने को मिलता है। सर्व प्राचीन जैन मंदिर के चिह्न बिहार में पटना के समीप लोहानीपुर में पाये गये हैं, जहाँ से कुम्रहार और बुलंदीबाग की मौर्यकालीन कलाकृतियों की परम्परा के प्रमाण भी मिले हैं। यहाँ एक जैन मंदिर की नींव मिली है। यह मंदिर ८.१० फुट वर्गाकार था। यहाँ प्राप्त ईंटे मौर्यकालीन सिद्ध हुई हैं । यहीं से एक मौर्यकालीन रजत सिक्का तथा दो मस्तकहीन जिनमूर्तियाँ भी मिली हैं जो पटना संग्रहालय में सुरक्षित हैं।२१ अजातशत्रु के उत्तराधिकारी उदय या उदयिन को जैनधर्म का अनुयायी बताया गया है । ऐसा उल्लेख मिलता है कि उसकी आज्ञा से पाटलिपुत्र में एक जैन मंदिर का निर्माण भी हुआ था।२२ ८वीं से १२वीं शती ई० के मध्य प्रतिहार ( ओसियां), परमार, चंदेल (खजुराहो-पार्श्वनाथ, आदिनाथ, घण्टई), चाहमान (बिजौलिया), चौलुक्य ( जालौर, तारंगा, कुंभारिया, देलवाड़ा-विमलवसही), चालुक्य ( बादामी, अयहोल), राष्ट्रकूट ( एलोरा ) एवं होयसल (असिकेरी, हलेबिड, लक्कुण्डी ) जैसे राजवंशों के काल में उत्तर और दक्षिण भारत में अनेक जैन मंदिरों का निर्माण हुआ। किन्तु सर्वाधिक जैन मंदिर गुजरात, राजस्थान और मध्यप्रदेश में बने ।२३ वर्तमान में सबसे प्राचीन जैन मन्दिर कर्नाटक के बीजापुर जिले में स्थित बादामी के समीप अयहोल का मेगुटी मंदिर है जिसका निर्माण शिलालेखानुसार ६३४ ई० में पश्चिमी चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय के राज्यकाल में रविकीति ने करवाया था ।२४ गुप्तोत्तरकालीन शिल्प शास्त्रों में वास्तुकला की तोन शैलियाँ निर्दिष्ट की गयी हैं-नागर, द्राविड़ तथा वेसर । अयहोल का मेगुटी जैन मंदिर द्राविड़ शैली का सबसे प्राचीन मंदिर है। द्राविड़ शैली का मन्दिर एक स्तम्भाकृति ग्रहण करता है जो ऊपर की ओर क्रमशः सिकुड़ता जाता है और ऊपर जाकर एक स्तूपिका का आकार ग्रहण कर लेता है। छोटी-छोटी स्तूपिकाएँ व शिखराकृतियाँ उसके नीचे के तलों के कोणों पर भी स्थापित की जाती हैं जिससे मंदिर की बाह्याकृति शिखरमय दिखायी देने लगती है ।२५ द्राविड़ शैली के अन्य जैन मंदिरों के उदाहरण तीर्थहल्लि के समीप हुम्मच का जैन मंदिर, पंचकूट बस्ति, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy