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अन्य देवी-देवता : १७५
मध्यकालीन तान्त्रिक प्रवृत्ति तथा जैनधर्म के प्रति सामान्यजनों को आकृष्ट करने के उद्देश्य से जिन मन्दिरों पर न केवल कामदेव की मूर्तियाँ उकेरी गयीं वरन् जैन ग्रन्थों में भी इस प्रकार के अंकन को संस्तुति दी गयी। हरिवंशपुराण में जिन मन्दिर में प्रजा के कौतुक के लिये कामदेव और रति की मूर्तियों के उत्कीर्ण किये जाने का उल्लेख हुआ है। ग्रन्थ के अनुसार यह जिन मन्दिर कामदेव के मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध था और कौतुकवश आये हुए लोगों को जैनधर्म की प्राप्ति का निमित्त था ।
खजुराहो के पार्श्वनाथ जैन मन्दिर पर विष्णु, शिव, ब्रह्मा, राम, बलराम आदि की शक्ति सहित आलिंगन मूर्तियों के समूह में काम और रति की भी दो युगल मूर्तियाँ हैं जो क्रमशः पूर्व और उत्तर की मित्तियों ‘पर उत्कीर्ण हैं । ४ पूर्वी भित्ति की मूर्ति में श्मश्रु ओर जटामुकृट से शोभित काम के दो हाथों में पंचशर एवं इषु-धनु हैं जबकि शेष दो हाथों में से एक व्याख्यानमुद्रा में है और दूसरा आलिंगनमुद्रा में । उत्तरी भित्ति की मूर्ति में काम दाढ़ी-मूछों से रहित तथा किरोटमुकुट से सज्जित हैं। उनके दो हाथों में पूर्ववत् पंचशर ( मानवमुख ) और इषु-धनु हैं तथा एक हाथ आलिंगनमुद्रा में है । व्याख्यानमुद्रा के स्थान पर एक हाथ में पदमकलिका प्रशित है। दोनों ही उदाहरणों में रति बायें पार्श्व में खडो हैं और उनका दाहिना हाथ आलिंगनमुद्रा में है जबकि बायें में पुस्तक ( या पद्म ) प्रदर्शित है। एलोरा की गुफा सं० ३४ में भी भूमितल के मुख्य मण्डप के एक स्तम्भ पर त्रिभंग में खड़ी कामदेव की एक मूर्ति उत्कीर्ण है । कामदेव के दो हाथों में इषु-धनु एवं पुष्पशर स्पष्ट हैं। वामनदेव
जैन ग्रन्थों में ब्राह्मण परम्परा के वामनदेव (विष्णु के अवतार ) का भी उल्लेख मिलता है । उत्तरपुराण में भी वामन का उल्लेख है जिन्होंने दो पगों में ही सम्पूर्ण पृथ्वी को नाप लिया और तीसरा पग रखने के लिये उन्हें स्थान ही शेष नहीं बचा । विद्याधर तथा भूमिगोचरियों द्वारा स्तुति करने पर उन्होंने पुनः अपने चरणों को संकुचित कर लिया। ५ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में भी वामनदेव का उल्लेख है किन्तु इसमें वामन रूप के स्थान पर विशाल रूप ( त्रिविक्रम ) में पृथ्वी को तीन पगों में नापने का सन्दर्भ आया है । ग्रन्थ में इन्हें त्रिविक्रम भी कहा गया है । ६
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