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________________ - १७४ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन रति नामक देवी का उल्लेख है । ७५ पुष्पदन्त के महापुराण में इन्द्र की आज्ञा से कुबेर द्वारा तीर्थंकर के जन्म के लिये एक सुन्दर नगर की रचना का उल्लेख आया है । इसमें इन्द्र द्वारा इन्हें यक्षराज भी कहा गया है । ७६ सभी तीर्थंकरों के जन्म के ६ मास पूर्व से कुबेर द्वारा जिन माता-पिता के आँगन में रत्नों की वर्षा करने का उल्लेख आता है । ७७ तीर्थंकर मूर्तियों में नेमिनाथ एवं अन्य तीर्थंकरों के साथ यक्ष के रूप में कुबेर ( या सर्वानुभूति ) के अंकन की चर्चा यक्ष-यक्षी सम्बन्धित अध्याय में की जा चुकी है । :: कामदेव : प्राचीनकाल से ही भारत में कामदेव के मंदिरों व उनकी पूजा का उल्लेख मिलता है । हिन्दू धर्म के समान जैनधर्म में भी कामदेव की परिकल्पना आकर्षक व्यक्तित्व वाले देवता के रूप में की गयी है । जैनधर्म में दोनों ही परम्पराओं में २४ कामदेवों का उल्लेख है किन्तु उन्हें ६३ शलाकापुरुषों की श्रेणी में न रखकर महान् आत्माओं की श्रेणी में रखा गया है । ये २४ कामदेव क्रमशः बाहुबली, प्रजापति, श्रीधर, दर्शनभद्र, प्रसेनचन्द्र, चन्द्रवर्ण, अग्नियुक्त, सनत्कुमार, वत्सराज, कनकप्रभ, मेघप्रभ, शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ, अरनाथ, बिजयराज, श्रीचन्द्र, नलराज, हनुमान, वालिराज, वासुदेव, प्रद्युम्न, नागकुमार, जीवन्धर तथा जम्बूस्वामी हैं । इनमें से कुछ कामदेव जैसे बाहुबली, प्रद्युम्न तथा जीवन्धर जैन परम्परा में एक महान् आत्मा और साधक के रूप में मान्य हैं । हनुमान, नलराज, वालिराज, वासुदेव एवं प्रद्युम्न ब्राह्मण परम्परा से सम्बन्धित हैं । प्रजापति और श्रीधर क्रमश: ब्रह्मा और विष्णु से सम्बन्धित हैं । यह सर्वथा उल्लेखनीय है कि ब्राह्मण परम्परा में जहाँ हनुमान को ब्रह्मचारी रूप में वर्णित किया गया है वहीं जैनधर्म में उन्हें कामदेव के रूप में एक हजार कन्याओं के साथ विवाह करने वाला बताया गया है । ° उनके पैरों पर परशु, अंकुश एवं चक्र जैसे प्रतीकों का भी उल्लेख है।" खजुराहो के पार्श्वनाथ मन्दिर पर अशोकवाटिका में सीता के समक्ष तथा उत्तरी भित्ति की राम-सीता मूर्ति में राम के समीप कपिमुख हनुमान की आकृतियाँ बनी हैं । शान्ति, कुन्थु व अरनाथ तीर्थंकर रहे हैं । यद्यपि कामदेव का व्यक्तित्व आकर्षक माना गया है फिर भी जैनधर्म में बाहुबली को ब्राह्मण परम्परा के समान प्रेम के देवता के रूप में नहीं स्वीकार किया गया है । २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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