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शलाका पुरुष : १३१
उसके सामने सुप्रभ व पुरुषोत्तम के वैभव और बल का वर्णन किया जिससे कुपित हो उसने उनके पास खबर भेजी कि वे उसके लिये गज व रत्न आदि कर के रूप में भेजें ।६२ फलस्वरूप बलभद्र, नारायण और प्रतिनारायण मधुसूदन के मध्य युद्ध हुआ। इस युद्ध में अन्त में मधुसूदन द्वारा फेंके गये चक्र से ही नारायण पुरुषोत्तम ने उसका वध कर
दिया।६३
५. सुदर्शन, पुरुषसिंह व मधुक्रोड : __ जैन परम्परा में सुदर्शन, पुरुषसिंह व मधुक्रीड का उल्लेख क्रमशः पाँचवें बलभद्र, नारायण और प्रतिनारायण के रूप में आता है जो पन्द्रहवें तीर्थंकर धर्मनाथ के समकालीन थे । सुदर्शन और पुरुषसिंह का जन्म खगपुर नगर के इक्ष्वाकुवंशी राजा सिंहसेन के यहाँ हुआ था। इनकी माता का नाम क्रमशः विजया व अम्बिका था।
इसी समय इनका शत्रु मधुक्रीड्६४ हुआ जो हस्तिनापुर नामक नगर का राजा था। सुदर्शन और पुरुषसिंह के बढ़ते हुए तेज को न सह सकने के कारण मधुक्रीड़ ने अपने प्रधानमंत्री को उनसे कर स्वरूप श्रेष्ठ रत्न मांगने के लिए भेजा जिसके फलस्वरूप दोनों के मध्य युद्ध हुआ और अन्त में मधुक्रीड् द्वारा चलाये गये चक्र से ही नारायण पुरुषसिंह ने उसका सिर काट डाला । चिरकाल तक दोनों भाइयों ने तीन खण्ड पथ्वी के
राज्यलक्ष्मी का उपभोग किया। आयु का अन्त होने पर नारायण पुरुषसिंह ने सातवें नरक और बलभद्र सुदर्शन ने धर्मनाथ के पास दीक्षा लेकर मोक्ष प्राप्त किया।६५ ६. नन्दिषेण, पुण्डरीक और निशुम्भ :
उत्तरपुराण में नन्दिषेण, पुण्डरीक और निशुम्भ का उल्लेख क्रमशः छठे बलभद्र, नारायण और प्रतिनारायण के रूप में हुआ है । इनका जन्म अट्रारहवें तीर्थंकर अरनाथ के तीर्थ में हुआ था । नन्दिषेण और पुण्डरीक का जन्म चक्रपुर नगर के इक्ष्वाकुवंशी राजा वरसेन की वैजयन्ती और लक्ष्मीमती रानी से हुआ था।
इसी समय निशुम्भ६६ इनका शत्रु हुआ जो चक्रपुर का तेजस्वी राजा था । इन्द्रपुर के राजा उपेन्द्रसेन ने जब अपनी पद्मावती नामक कन्या को पुण्डरीक के विवाह के लिये प्रदान किया तो कुपित हो निशुम्भ ने अपनी सेना के साथ पुण्डरीक पर आक्रमण कर दिया। चिरकाल तक युद्ध के बाद अन्त में नारायण पुण्डरीक ने उसके ही द्वारा चलाये गये
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