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________________ १०४ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययनः शिला पर उत्तराभिमुख होकर बैठे और वस्त्र आभूषण तथा माला आदि का परित्याग किया। उन्होंने केशों का भी लुंचन किया जिसे इन्द्र ने उठाकर मणिमय पिटारे में रखकर क्षीरसागर में प्रवाहित किया।२४४ __ महावीर के जीवन से सम्बन्धित कुछ घटनाओं को लेकर दिगम्बर व श्वेताम्बर परम्पराओं में थोड़ा मतभेद है जैसे दिगम्बर परम्परा के अनुसार वे तीस वर्ष तक कुमार व अविवाहित रहे और फिर प्रवजित हुए । किन्तु श्वेताम्बर परम्परा में इनके विवाह तथा एक पुत्री की चर्चा है ।२४५ इसी प्रकार दिगम्बर परम्परा के अनुसार प्रवजित होते समय उन्होंने समस्त वस्त्रों का परित्याग कर दिगम्बर रूप धारण किया था किन्तु श्वेताम्बर परम्परानुसार उन्होंने प्रवृजित होने के डेढ़ वर्ष बाद तक वस्त्र का पूरी तरह परित्याग नहीं किया था ।२४॥ जिस दिन इन्होंने संयम धारण किया था उसी दिन इन्हें चौथा मनःपर्ययज्ञान उत्पन्न हो गया। सभी देव इनकी स्तुति कर वापस अपनेअपने स्थान को चले गये। तदनन्तर महावीर एकान्त स्थान में विधिपूर्वक तप करने की इच्छा से तपोवन में गये और वहाँ पर निशंक रीति से भोगों की निवृत्ति कर दस प्रकार के धर्मध्यान का चिन्तवन किया। एक दिन जब वे उज्जयिनी के अतिमुक्तक नामक श्मशान में प्रतिमायोग से विराजमान थे, महादेव नामक रुद्र ने इनकै धैर्य की परीक्षा लेने के उद्देश्य से विकराल वैतालों का रूप धारण कर इनके सामने अनेक प्रकार के उपसर्ग उपस्थित किये । उसने सर्प, हाथी, सिंह, अग्नि और वायु के साथ भीलों की सेना बनाकर अपनी विद्या के प्रभाव से भयंकर उपसर्गों द्वारा उन्हें समाधि से विचलित करने का प्रयत्न किया। किन्तु अन्ततः असफल होने पर उसने महावीर का 'महति' और 'महावीर' नाम रखकर उनकी अनेक प्रकार से स्तुति की तथा पार्वती के साथ नृत्य कर वहाँ से चला गया ।२४७ दिगम्बर परम्परा का उक्त प्रसंग स्पष्टतः शिव से सन्दर्भित है और शैव एवं जैनधर्मों के पारस्परिक संबंधों का सूचक है। श्वेताम्बर परम्परा में भी इनके साधना के मध्य उत्पन्न किये गये विभिन्न उपसर्गों का उल्लेख मिलता है। उदाहरणार्थ-एक दिन महावीर जब कुमरिग्राम के बाहर ध्यानस्थ खड़े थे, एक ग्वाला वहाँ आया और अपने बैलों को वहाँ छोड़ गाय दुहने के लिये पास के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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