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________________ अध्याय अष्टम मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म का मूल्यांकन एवं योगदान ८वीं से १८वीं शताब्दी तक राजस्थान में जैनधर्म के विकास के कतिपय आयामों के अवलोकन के उपरान्त उक्त कालान्तर्गत सांस्कृतिक जीवन धारा में जैनधर्म की भूमिका एवं योगदान का आकलन तथा मूल्यांकन करना अत्यावश्यक है । जैनधर्म की लब्धियां तथा स्थूल सिद्धियाँ राजस्थान के वैभव सम्पन्न सांस्कृतिक इतिहास का स्वर्णिम पृष्ठ ही नहीं अपितु भारतीय संस्कृति के इन्दधनुषी स्वरूप की भी एक मनोरम रंगाभा है, जिसकी दीप्ति इस सुदीर्घ काल खण्ड के झंझावातों में भी कभी धूमिल नहीं हुई। विवेच्य काल में राजस्थान के धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, वैचारिक एवं दार्शनिक जीवन में जैन संस्कृति की पावन धारा सतत प्रवाहित होती रही तथा युद्ध, हिंसा एवं विध्वंस के वातावरण में भी आप्तजनजोवन को करुणा, आध्यात्मिक कल्याण एवं अहिंसा के शान्त रस से आप्लावित करती रही। (अ) भौगोलिक परिप्रेक्ष्य का प्रभाव : __मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म के प्रचार-प्रसार से उद्भूत स्वरूप का समग्र चित्र इस प्रदेश की भौगोलिक विशेषताओं के अनुरूप विकसित हुआ है । प्राकृतिक लक्षणों का जितना प्रभाव राजस्थान में जैनधर्म के संदर्भ में परिलक्षित होता है, उतना सम्भवतः अन्य किसी धर्म के संदर्भ में नहीं होता । मध्यवर्ती अरावली पर्वत श्रृंखला के. पश्चिम के मरुस्थलीय विस्तार की विशेषताएँ-जलवायु की विषमता, जल संसाधनों एवं प्राकृतिक वनस्पति की न्यूनता, प्रविकीणं बस्तियाँ एवं शुष्कता है, जबकि इसके पूर्व व दक्षिण-पूर्व में आवास योग्य अनुकूल जलवायु की उपलब्धि है। जैन-धर्म के श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दोनों सम्प्रदाय राजस्थान में निरन्तर अस्तित्ववान रहे किन्तु इनके प्रभाव क्षेत्र में भौगोलिक पार्थक्य देखने को मिलता है । श्वेताम्बर सम्प्रदाय का प्रभाव क्षेत्र मूलतः अरावली के पश्चिम का प्रदेश रहा किन्तु न्यूनाधिक रूप से इसका वर्चस्व सम्पूर्ण राजस्थान में, सभी कालखण्डों में, सभी क्षेत्रों में भी रहा । दिगम्बर सम्प्रदाय का वर्चस्व अरावली के पूर्व व दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान में ही विशेष: रूप से रहा और इसकी गादियां चित्तौड़, नागौर, अजमेर, जयपुर, बघेरा आदि अनुकूल. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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