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जैन शास्त्र भंडार : ४२५
परिमाण में शास्त्रों उन्होंने सिद्ध हेम
अनन्य प्रेमी गुर्जरेश्वर सिद्धराज जयसिंह ने एक शाही पुस्तकालय की स्थापना की थी, जिसमें विभिन्न विषयों की रचनाओं को संग्रहीत किया था एवं बड़े की ताड़पत्रीय प्रतियाँ स्वर्णाक्षरों व सचित्रादि लिखवायी थी । व्याकरण की एक लाख पच्चीस हजार प्रतियां तैयार करवाईं ताकि इन्हें विद्वानों एवं ग्रंथ भण्डारों को भेंट स्वरूप दे सकें । 2 कुमारपाल ने २१ शास्त्र भण्डार स्थापित किये और 'प्रत्येक में स्वर्णिम स्याही से लिखी गई 'कल्पसूत्र' की प्रति रखवाई | 3
वस्तुपाल एवं तेजपाल, अपने गुरु विजयसेन सूरि और उदयप्रभ सूरि के उपदेशों से शास्त्र भण्डार स्थापित करने के लिये प्रोत्साहित हुए थे । मांडवगड़ के मंत्री पेथडशाह आबू सहित ७ नगरों में शास्त्र भण्डारों की स्थापना की । " जैसलमेर के महारावल हरराज ने जैन कवि कुशललाभ के सहयोग से ही 'पिंगल शिरोमणि ग्रन्थ' की रचना की । मानसिंह के मंत्री नानू गोधा ने भट्टारक ज्ञानकीर्ति से 'यशोधर चरित्र' की रचना करने के लिये प्रार्थना की थी। जिनचन्द्र सूरि को अकबर द्वारा 'युगप्रधान ' पद देने पर बीकानेर के महाराजा रायसिंह व कुँवर दलपत सिंह द्वारा भी संख्या - बद्ध प्रतियाँ लिखवाकर भेंट करने के उल्लेख मिलते हैं । इन ग्रन्थों की प्रशस्तियों में बीकानेर, खंभात आदि के ज्ञान भण्डार स्थापित करने का भी वर्णन है । ७
जयपुर के दीवान बालचन्द्र छाबड़ा और अमरचन्द ने कई हस्तलिखित ग्रंथ लिखवा - कर जयपुर नगर के विभिन्न शास्त्र भण्डारों में वितरित किये थे । " महाराजा सवाई जयसिंह के दीवान मोहनदास ने आमेर में बहुत बड़ा मन्दिर निर्मित करवाकर उसमें ग्रंथ भण्डार भी स्थापित करवाया ।" दीवान रामचन्द छाबड़ा ( १७८४ ई० ) और राव कृपाराम पांड्या (१७८२ ई० - १७९० ई०) तथा आमेर व जयपुर के अन्य कई दीवानों ने ग्रन्थ भण्डारों की स्थापना में पूर्ण सहयोग दिया । "
१. नाहटा, राजैसा, पृ० ४१९ ।
२. प्रभावक चरित्र ( देखें - हेमचन्द्र प्रबन्ध ) |
३. कुमारपाल प्रबन्ध, पृ० ९६-९७ ।
४. उपदेशतरंगिणी, पृ० १४२ ।
५. भारतीय जैन श्रमण संस्कृति अने लेखन कला, पृ० ९२ ।
६. परम्परा, भाग – १३ ।
७. भँवर लाल नाहटा, राजैसा, पृ० ४१९ ।
८. वीरवाणी, भाग - १ |
९. वीरवाणो, भाग - १ । १०. वही ।
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