________________
जैन शास्त्र भंडार : ४२३
उन पर वृत्तियाँ, भाष्य एवं टीकायें भी लिखीं। यही नहीं, उन्हें अनुवादित कर विस्तृत प्रचारित भी किया । ये ग्रन्थ विविध विषय यथा काव्य, कथा, व्याकरण, आयुर्वेद, ज्योतिष, स्मृति, उपनिषद्, संहिता, ब्राह्मण आदि से सम्बन्धित हैं । केवल पाटोदी जैन मंदिर, जयपुर के भण्डार में ही उक्त विषयों से सम्बन्धित ५०० ग्रन्थ हैं | मम्मट, सोमेश्वर, कवि रुद्रट, कुट्टक, वामन, उद्भट, राजानक, महिम, कालिदास, माघ, भारवि, हर्ष, हलायुध, भट्टी, उदयनाचार्य, वाचस्पति मिश्र, मुरारी, विशाखदत्त, नारायण, सुबंधु आदि अन्यान्य कई रचनाकारों की दुर्लभ व महत्त्वपूर्ण कृतियाँ इन शास्त्र भण्डारों में सुरक्षित हैं ।
भट्ट -
११. ये ग्रन्थ भण्डार पुस्तकालय के रूप में भी उपयोगी थे । स्वाध्याय प्रेमी यहाँ बैठकर शास्त्रों का अध्ययन कर सकते थे । ग्रन्थों की सूचियां भी उपलब्ध हुआ करती थीं तथा ग्रन्थों को लकड़ी के पुट्ठों के बीच में रख कर सूत अथवा सिल्क के फीतों से बांधा जाता था। वैज्ञानिक विधि से रख-रखाव के कारण ये सुदीर्घ अवधि तक सुरक्षित रह पाये ।
महत्त्वपूर्ण साहित्यिक केन्द्र भी थे । असंख्य जैन विद्वानों ने
१२. शास्त्र भण्डार साहित्यिक केन्द्र भी होते थे जहाँ विद्वानों के द्वारा नव साहित्य सृजन तथा महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का प्रतिलिपिकरण निरन्तर होता रहता था । इनके प्रमुख, यति या विद्वान् भट्टारक होते थे । जैसलमेर, अजमेर, नागौर, बाँरा, फतेहपुर, आमेर, कोटा, रणथम्भौर, डूंगरपुर आदि के शास्त्र भंडार भट्टारकों व यतियों के नेतृत्व में यहाँ अपनी कृतियाँ रचीं । १३. विभिन्न शास्त्र भण्डारों के मंदिर अच्छे शैक्षिक केन्द्र भी थे । यहाँ बच्चों व वयस्कों को प्राकृत, संस्कृत, व्याकरण, कोष, काव्य, नाटक, दर्शन, खगोल, गणित आदि की भी शिक्षा दी जाती थी । अध्ययन-अध्यापन में जैनेतर ग्रन्थों का भी प्रयोग होता था । ग्रन्थ भण्डारों में अजैन ग्रन्थों की प्राप्ति मुनियों व श्रावकों की धर्म-निर पेक्षता, उन्मुक्त दृष्टिकोण व सर्वधर्म समभाव के परिचायक हैं । इन शैक्षिक केन्द्रों पर शिष्यों द्वारा गुरुओं को ग्रन्थ भेंट करने की भी परंपरा थी, जिससे शास्त्र भण्डार निरन्तर समृद्ध होते रहे 1
१४. मुगल काल में राजस्थानी शासकों का देश के दूरस्थ प्रदेशों से सम्पर्क रहने के कारण इन संग्रहों में देश की विभिन्न भाषाओं के हस्तलिखित ग्रंथ भी उपलब्ध हैं । उदाहरणार्थ, जयपुर में यदि बंगाली भाषा के ग्रन्थ मिलेंगे तो बीकानेर में कन्नड़ और उदयपुर में गुजराती भाषा के ग्रन्थ भी उपलब्ध हो जायेंगे ।
जैनाचार्यों का योगदान
राजस्थान के जैनाचार्य साहित्य के सच्चे साधक थे । आत्मचिंतन एवं आध्यात्मिक चर्चा के अतिरिक्त समय का पूर्ण सदुपयोग साहित्य सृजन में होता था । स्वयं रचना
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education International