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जैन साहित्य एवं साहित्यकार : ४०३ ६५. नवल ( १७३५. ई०-१७९८ ई० )-ये बसवा के निवासी थे । इनकी "दोहा पच्चीसी", २२२ पद, “वर्धमान पुराण" नामक चरित ग्रंथ आदि रचनाएँ हैं।' अन्य पद्य साहित्यकार:
उक्त कवियों के अतिरिक्त विमलकीर्ति, नयरंग, जयनिधान, वाचक गुणरत्न, चारित्रसिंह, धर्मरत्न, धर्मप्रमोद, कल्याणदेव, वीरविजय, सारंग, जयसोम, उपाध्याय लब्धिकल्लोल, सहजकीति, श्रीसार, विनयमेरु, वाचक सूरचन्द्र आदि कितने ही राजस्थानी कवि हुए हैं । सम्राट अकबर के प्रतिबोधक युगप्रधान जिनचंद्र सूरि के अनेक शिष्य एवं प्रशिष्य थे, जो राजस्थानी भाषा के अच्छे विद्वान् थे। ऐसे विद्वानों में समयप्रमोद, मुनिप्रभ, समयराज, हर्षवल्लभ, धर्मकीर्ति, श्रीसुन्दर, ज्ञानसुन्दर, जीवराज, जिन'सिंह सूरि, जिनराज सूरि आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। १७वीं शताब्दी में अन्य कवि लब्धिरत्न, देवरत्न, महिमामेरु, लब्धिराज, कल्याणकलश, पद्मकुमार, लखपत आदि हुए । १७वीं शताब्दी में ही तपागच्छ में मेघविजय, विनयविजय, यशोविजय एवं खरतरगच्छ में धर्मवर्धन, लक्ष्मीबल्लभ, देवचंद्र आदि उल्लेखनीय हैं । जयरंग, सुमतिरंग, धर्ममंदिर, अभयसोम, कुशलधोर, अमरविजय आदि भी राजस्थानी भाषा के कवि थे। १७वीं शताब्दी के ही अन्य कवियों में भुवनसेन (१६४४ ई०), सुमतिवल्लभ (१६६३ ई० ), श्रीसोम (१६६८ ई०), कनकनिधान, मतिकुशल (१६६५ ई०), रामचंद्र ( १५५४ ई०), विनयलाभ (१७९१ ई०), कुशलसागर (१६७९ ई०), सोमहर्ष (१६४७ ई०), राजहर्ष, राजसार, दयासार, जिनसुन्दर सूरि, जिनरंग सूरि, विद्यारुचि, लब्धिरुनि, मानसागर, सुखसागर आदि अनेक कबि हुए। दिगम्बर संत कवियों में भट्टारक शुभचंद्र द्वितीय, भट्टारक नरेन्द्रकीति, सुरेन्द्रकीति, गुणकीर्ति, आचार्य जिनसेन, ब्रह्मधर्मरुचि, सुमतिसागर, समयसागर, त्रिभुवनकीर्ति, ब्रह्मअजित, महीचंद्र, मुनि राजचंद्र, विद्यासागर, रत्नचंद्र द्वितीय, विद्याभूषण, ज्ञानकीर्ति आदि ने भी राजस्थानी जैन साहित्य की अपूर्व सेवा की। (ख) गद्य साहित्य :
१७वीं शताब्दी :-१६०० ई० में उदयसागर ने उदयपुर में 'क्षेत्रसमासबालात्रबोध', विमलकोति ने १६०५ ई० में 'आवश्यकबालावबोध', 'जीवविचारनवतत्व-गंडक बालावबोध', 'जयतिहुअणबालावबोध', 'दशवकालिक टब्बा', 'षष्ठीशतकबालावबोध', 'उपदेशमाला टब्बा'; 'प्रतिक्रमण टब्बा', 'इक्कीस ढाणा टब्बा' आदि भाषा
१. राजैसा, पृ० २२२। २. राजैसंत, पृ० १६५। ३. वही।
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