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जैन साहित्य एवं साहित्यकार : ३८७
१४. भावविजय - - तपागच्छ के भावविजय ने १६३२ ई० में सिरोही में "उत्तराध्ययनसूत्र टीका" की रचना की ।"
१५. पद्म सागर --- ये तपागच्छ के आचार्य थे । इन्होंने १६०० ई० में पीपाड़ में "उत्तराध्ययनसूत्र कथासंग्रह " लिखा ।
१६. चारित्रचंद्र -- ये खरतरगच्छ के थे । इन्होंने १६६६ ई० में रिणी में "उत्तराध्ययनसूत्र दीपिका " रची।
१७, शिवानघानोपाध्याय - ये खरतरगच्छ के मुनि थे । इन्होंने पाली में "क्षेत्रसमास वृत्ति" एवं जोधपुर में १६३३ ई० में " उपदेशमाला संस्कृत पर्याय" की रचना की । ४
१८. मतिवर्द्धन – ये भी खरतरगच्छ के थे। इन्होंने १६८१ ई० में जैतारण में " गौतम पृच्छाटीका ” की रचना की ।"
१९. ललित कीर्ति – ये भी खरतरगच्छ के थे । इन्होंने १६२१ ई० में लाटद्रह में "शीलोपदेशमाला टोका" की रचना की ।
२०. विनय विजयोपाध्याय - ये तपागच्छीय साधु थे । इन्होंने १६६१ ई० में जोधपुर में "इंदुदूत" की रचना की । ७
२१. विनय चंद्र - - खरतरगच्छ के इन मुनि ने १६३७ ई० में राडद्रह में "मेघदूत टीका" रचो थी ।'
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२२. गुणरत्न - इन खरतर गच्छीय मुनि ने १६१९ ई० में जोधपुर में रघुवंश टीका" निबद्ध की ।
२३. सुमति विजय – ये खरतर गच्छ के थे। इन्होंने बीकानेर में १६४१ ई० में "रघुवंश टीका " लिखी । १६४२ ई० में "मेघदूत वृत्ति" की भी रचना की । १०
१. राभा, ३, क्र० २ ।
२. राजैसा, पृ० ७४-८२ ॥
३. वही ।
४. वही ।
५. वही ।
३. वही ।
७. वही ।
८. वही ।
९. वही ।
१०. वही ।
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