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जैन साहित्य एवं साहित्यकार : ३४१
हुआ था। इनका कार्यक्षेत्र चित्तौड़ ही रहा । कालान्तर में ये अचलगढ़-आबू में स्थानान्तरित हो गये और वहाँ ९७७ ई० में " धम्मपरिक्खा" की रचना पद्यड़िया छंद में की । यह काव्य ११ सन्धियों में निबद्ध है, जिसमें २३८ कडवक हैं । आमेर शास्त्र भण्डार में इस ग्रन्थ की कई प्रतियाँ उपलब्ध हैं । इस काव्य के आधार पर ही १४९५६० में भट्टारक श्रुतकीर्ति ने " धर्मं परीक्षा" को रचना की, जिसमें कथानक ही नहीं अपितु वर्णन का भी अनुगमन किया गया है ।
२. धनपाल प्रथम :- - जैन साहित्य में धनपाल नाम के कई साहित्यकारों का उल्लेख मिलता है | पं० परमानन्द शास्त्री ने धनपाल नाम के चार विद्वानों का परिचय दिया है। ये चारों ही भिन्न-भिन्न समय में हुए । धनपाल प्रथम संस्कृत के कवि व राजा भोज के आश्रित थे । इन्होंने अपभ्रंश में सांचौर नगर में स्थित महावीर जिनालय सम्बन्धी "सत्यपुरिय महावीर उत्साह "४ नामक रचना लिखी । इस रचना से महमूद गजनी द्वारा मूर्तिभंजन की घटना का पता चलता है ।
३. धाहिल : - ये १०वीं शताब्दी के अपभ्रंश कवि थे । इनका सम्बन्ध महाकवि माघ के वंश से है, अतः ये श्रीमालवंशीय गुर्जर वैश्य थे । इनकी जन्मभूमि भीनमाल रही होगी । इन्होंने अपभ्रंश में "प उमसिरी चरियु" की रचना की । "
४. महेश्वर सूरि : इनका समय भी १०वीं शताब्दी के पश्चात् का माना जाता है । इनके द्वारा रचित एक लघु कृति "संयम मंजरी" प्राप्त होती है ।
५. जिनदत्त सूरि : - युग प्रधान जिनदत्त सूरि का जन्म १०७५ ई० में धंधुका में हुआ था । ये दादाजी के नाम से प्रख्यात थे । इनकी अपभ्रंश भाषा की ३ रचनाएँ उपलब्ध हुई हैं—“उपदेश रसायन रास", "कालस्वरूप कुलक" और " चर्चरी" । " "उपदेश रसायन रास” ओरिएन्टल इन्स्टीट्यूट बड़ौदा से, "अपभ्रंश काव्यत्रयी" में प्रकाशित हो चुकी है । " चर्चरी” की रचना वागड़ प्रदेश में व्याघ्रपुर में की गई थी ।
६. धनपाल द्वितीय :- १०वीं या ११वीं शताब्दी में अपभ्रंश के एक अन्य प्रसिद्ध afa धनपाल हुए, जिन्होंने "भविसदत्तकहा" नामक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ लिखा । इसके
१. श्री विरास्मा, पृ० ७२१ ।
२. जैसरा, पृ० २२९ ।
३. अने० ७०८, पृ० ८२ । ४. जैग्रप्रस, पृ०७५ ॥
५. प्रेमसुमन, जैसरा, पृ० २३० ।
६.
अपभ्रंश साहित्य, पृ० २९५ । । ७. जैसासइ, पृ० २३३ ।
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