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________________ साधन स्रोत : ५ में ऐतिहासिक तथ्य स्वयमेव समाविष्ट हो जाते थे। ऐसे लेख मुख्यतः बड़ी प्रशस्तियों और छिटपुट ऐतिहासिक तथ्यों वाले उपलब्ध होते हैं। बृहद् प्रशस्तियों में प्रारम्भ में तीर्थकर, शासन देवता या सरस्वती का स्मरण होता है। "विमल वसहि" का १३२१ ई० को शिव स्तुति' से प्रारम्भ होने वाला लेख एक अपवाद है। स्तुति के पश्चात् उस क्षेत्र के राजवंश का वर्णन, सम्बद्ध क्षेत्रों का भौगोलिक विवरण, जैनाचार्यों की गुरु शिष्य परम्परा, श्रेष्ठी वंश का विवरण, जाति, गोत्र, कुल, निवास स्थान का नाम, अन्य पुण्य कार्यों का विवरण तथा साधुओं के गण, गच्छ आदि दिये होते हैं । तत्पश्चात् अनुदान का स्वरूप, लेख के रचनाकार, लिपिकर्ता एवं सूत्रधार का नाम तथा सर्वांत में तिथि दी होती है । सभी प्रशस्तियों में उक्त क्रम का अनुपालन आवश्यक नहीं था। इनमें से कुछ तथ्य लुप्त भी देखने को मिलते हैं। पूर्व-मध्यकालीन अभिलेखों में केवल वर्ष अंकित होता था, किन्तु बाद में मास व तिथि भी अंकित की जाने लगी । लेख के अन्त में ''इतिशुभम्" या "छ" भी अंकित देखने को मिलता है । (ङ) संघ यात्रा संबंधी लेख : जैन तीर्थों की यात्रा के निमित्त चतुर्विध संघ के गठन एवं विभिन्न तीर्थों के नामोल्लेख सहित कई अभिलेख देखने को मिलते हैं । कई बार ऐसे उल्लेख स्वतंत्र अभिलेख में नहीं, अपितु किसी वंश विशेष की उपलब्धियों में वणित मिलते हैं । कतिपय छोटे लेख तीर्थों के व्यक्तिगत रूप से दर्शन करने सम्बन्धी भी मिलते हैं । आबू में इस प्रकार के १५वीं से १९वीं शताब्दी तक के कई लेख उपलब्ध है, जो सामान्यतः स्थानीय भाषाओं में हैं। इनसे संघपति, जैनाचार्य, विभिन्न धावकों, जातियों, गोत्रों एवं तत्समय के लोकप्रिय तीर्थों के नाम ज्ञात होते हैं। (च) अन्य लेख : जैन परम्पराओं में मन्दिर के सम्मुख कीर्ति स्तम्भ या मान स्तम्भ निर्मित करवाने के कई उदाहरण हैं। इनका सर्वप्रथम उल्लेख ८६१ ई० में मण्डोर और रोहिंसकूप में कीर्ति स्तम्भ निर्मित करवाने का मिलता है। बघेरवाल जीजा और इसके पुत्र पुण्यसिंह द्वारा निर्मित चित्तौड़ का जैन कीर्ति स्तम्भ राजस्थान के महत्त्वपूर्ण स्मारकों में से हैं । दिगम्बर जैनाचार्यों के अवशेषों पर निर्मित स्मारक "निषेधिका" कहलाते हैं। इनके ऊपर अंकित लेख राजस्थान में १० वीं शताब्दी से ही उपलब्ध हैं। इनमें दिवंगत आचार्य का नाम, विधि आदि अंकित होती है। सती लेख और जुझार १. अ० ज० ले० सं० क्र. १ । २. वही, क्र० १७४-१८३, ३७९-४०६ । ३. एइ, जि० ८. पृ० ८७ । ४. अने; अप्रैल, १९६९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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