SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९० : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म चतरसेन और धर्मभाई अम्बरसेन का उल्लेख है ।' उक्त उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि पूर्वकाल में आचार्य किसी संघ से सम्बद्ध नहीं थे । दिगम्बर सम्प्रदाय के सभी संघ राजस्थान से बाहर मुख्यतः दक्षिण में स्थापित हुए थे और वहीं प्रचलन में थे। उत्तरी भारत में ये बाद में प्रकट हुए। सम्भवतः शैवों के त्रास के कारण दिगम्बर संत दक्षिण से गजरात और राजस्थान की तरफ प्रवासित हुए, जहाँ उन्होंने संघों की गादियाँ स्थापित की। यह भी सम्भव है कि उत्तर के दिगम्बर मतावलम्बियों ने दक्षिण के संघों की नकल की हो। राजस्थान में पूर्व मध्यकाल में निम्नलिखित संघों, अन्वयों, गच्छों, गणों आदि का उल्लेख अभिलेखीय व साहित्यिक प्रमाणों से उपलब्ध होता है । १२वीं शताब्दी के अभिलेखों में इनका उल्लेख होने से सिद्ध होता है कि इसी शताब्दी में राजस्थान में संघों का प्रचार हुआ। राजस्थान से प्राप्त अभिलेखों में संघ, गण, गच्छ, अन्वय और आचार्य का नाम, इस क्रम में अधिकांश देखने को मिलते हैं। १. मूलसंघ-यह दिगम्बर सम्प्रदाय का प्राचीनतम संघ है। ११०० ई० के अभिलेख के अनुसार यह कुन्दकुन्द के द्वारा स्थापित किया गया। किन्तु यह लेख पश्चात्वर्ती होने के कारण अधिक विश्वसनीय नहीं है । पट्टावलियों से प्राप्त जानकारी के अनुसार आचार्य माघनन्दी ने इस संघ की स्थापना की थी। चौथी और पाँचवी शताब्दी के अभिलेखों के अध्ययन से, मूल संघ की स्थापना ईसा की दूसरी शताब्दी में श्वेताम्बर व दिगम्बर सम्प्रदायों के अस्तित्व में आने के समय हुई।" मूल संघ में निम्न उपभेद पाये जाते हैंआम्नाय-- १. चन्द्रकीर्ति आम्नाय २. दिगम्बर आम्नाय ३. काकोपल आम्नाय ४. कुन्दकुन्दादि आम्नाय ५. नन्दि आम्नाय० ६. सद आम्नाय१ १. एरिराम्यूअ, १९२०-२१, क्र० ३ । २. भादिजैती, ४, पृ० १२२ । ३. जैशिस, १, क्र० ५५ । ४. इए, २०, पृ० ३४१ । ५. जैइरा, पृ० ६९ । ६. नाजैलेस, २, क्र० ११३२ । ७. जैसिभा, १४, अंक २, पृ० ५६-६१ । ८. इए, ७, पृ० २०९। ९. जैसिभा, १४, अंक २, पृ० ५६-६१ । १०. वही। ११. नाजैलस, १, क्र० ३२५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy