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________________ ५८ बौद्ध प्रमाण-मीमांसा की जैनदृष्टि से समीक्षा प्रभाचन्द्र (९८०-१०६५ ई०) प्रभाचन्द्र जैन-न्याय के महान् टीकाकार थे। २६० अकलङ्क के लघीयस्त्रय एवं माणिक्यनन्दी के परीक्षामुख पर प्रभाचन्द्र ने क्रमशः न्यायकुमुदचन्द्र एवं प्रमेयकमलमार्तण्ड नामक टीकाएं लिखकर जैनन्याय को अनुपम योगदान किया है। पाठक, जुगलकिशोर मुख्तार, नाथूराम प्रेमी आदि विद्वान् इनको आदिपुराण में स्मृत चन्द्रोदय के कर्ता प्रभाचन्द्र से अभिन्न समझकर आठवीं सदी के उत्तरार्द्ध एवं नवीं सदी के पूर्वार्द्ध में स्थिर करते हैं, किन्तु अनेक ठोस प्रमाणों से इसका खण्डन हो जाता है । २६१ कैलाशचन्द्र शास्त्री ने न्यायकुमुदचन्द्र प्रथम भाग की प्रस्तावना ( पृ० १२३ ) में प्रभाचन्द्र की समयरेखा ९५० ई० से १०२० ई० के मध्य खींची है, किन्तु न्यायकुमुदचन्द्र के द्वितीय भाग की प्रस्तावना ( पृ० ५८) में महेन्द्र कुमार जी इसमें कुछ संशोधन कर इसे ९८० से १०६५ ई० तक ले जाते हैं, जो अधिक उपयुक्त प्रतीत होता है । प्रभाचन्द्र बहुश्रुत विद्वान् थे। जैन एवं जैनेतर समस्त दर्शनग्रंथों का उन्हें अभ्यास था । अपने प्रसिद्ध दोनों टीकाग्रंथों में वे न्याय, वैशेषिक, योग, सांख्य, मीमांसा, वेदान्त एवं बौद्ध दर्शनों के विभिन्न प्रसिद्ध ग्रंथों से पूर्वपक्ष का उपस्थापन कर उनका युक्तिपुरस्सर खण्डन करते हैं । .२६२ २६४ प्रमेयकमलमार्तण्ड एवं न्यायकुमुदचन्द्र के अतिरिक्त प्रभाचन्द्र के कुछ अन्य ग्रंथों का भी पता चला है, यथा – १. तत्त्वार्थवृत्ति—- यह पूज्यपाद की सर्वार्थसिद्धि पर लघुवृत्ति है। २. शाकटायनन्यास -यह शाकटायन व्याकरण की व्याख्या है 1 ३. शब्दाम्भोजभास्कर - जैनेन्द्र व्याकरण पर महान्यास है । ४. प्रवचनसारसरोजभास्कर - यह प्रवचनसार पर टीका है । ५. गद्यकथाकोश एवं ६. महापुराण टिप्पण | २६३ इन रचनाओं में से शाकटायनन्यास को महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य ने प्रभाचन्द्र की रचना न मानकर उसे शाकटायन कृत ही माना है। रत्नकरण्डटीका, समाधितन्त्रटीका, क्रियाकलापटीका, आत्मानुशासनतिलक आदि ग्रंथों की भी प्रभाचन्द्र विरचित होने की संभावना प्रकट की गयी है । उपलब्ध एवं ज्ञात समस्त रचनाओं में जैन-न्याय से सम्बद्ध उनकी दो ही रचनाएं हैं- प्रमेयकमलमार्तण्ड एवं न्यायकुमुदचन्द्र । ये दोनों इनके प्रसिद्ध टीकाग्रंथ हैं । प्रमेयकमलमार्तण्ड - माणिक्यनन्दी विरचित जैन-न्याय के संक्षिप्त सूत्रग्रंथ परीक्षामुख पर आचार्य प्रभाचन्द्र की टीका को प्रमेयकमलमार्तण्ड के नाम से जाना जाता है । २६५ यह अन्वर्थनामा रचना है, २६०. आदिपुराण में जिनसेन ने चन्द्रोदय के कर्ता प्रभाचन्द्र का स्मरण किया है, किन्तु पं० कैलाशचन्द्रशास्त्री ने 'न्यायकुमुदचन्द्र' के रचयिता प्रभाचन्द्र से उन्हें पृथक् सिद्ध किया है । - न्यायकुमुदचन्द्र, प्रथम भाग, प्रस्तावना, पृ० ११७-११९ । I २६१. द्रष्टव्य, न्यायकुमुदचन्द्र भाग - २, प्रस्तावना पृ० ५०-५८ २६२. न्यायकुमुदचन्द्र, भाग-१, प्रस्तावना पृ. १२५ २६३. अंतिम चार रचनाओं का उल्लेख पं. महेन्द्र कुमार जी ने किया है। द्रष्टव्य, न्यायकुमुदचन्द्र भाग-२, प्रस्तावना पृ.५९ । २६४. न्यायकुमुदचन्द्र, भाग-२, प्रस्तावना, पृ. ६१ २६५. प्रमेयकमलमार्तण्ड का प्रकाशन पं. महेन्द्रकुमार जी के संपादन में निर्णयसागर प्रेस, बम्बई से हुआ था । उसके अनन्तर यह तीन भागों में जिनमती माताजी द्वारा हिन्दी में अनूदित होकर मदनगंज-किशनगढ़ से प्रकाशित हुआ है । इण्डियन बुक्स सेण्टर, नई दिल्ली ने मूल प्रमेयकमलमार्तण्ड का पुनः प्रकाशन किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002113
Book TitleBauddh Pramana Mimansa ki Jain Drushti se Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, & Religion
File Size20 MB
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