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________________ प्रकाशकीय भारतीय दर्शनों में जैन और बौद्ध दोनों में ही श्रमण-परम्परा के दर्शन हैं। किन्तु जहाँ तक इन दोनों के दार्शनिक मन्तव्यों का प्रश्न है दोनों में पर्याप्त मतभेद पाया जाता है। यह भी सत्य है कि बौद्ध प्रमाण-मीमांसा के विकास के पश्चात् ही जैन तार्किकों ने प्रमाण के क्षेत्र में प्रवेश किया। इसका परिणाम यह हुआ कि जैन तार्किकों को बौद्ध प्रमाणशास्त्र की अवधारणाओं की समीक्षा के लिए पर्याप्त अवसर मिला। जैन प्रमाणशास्त्र के ग्रन्थों में पूर्वपक्ष के रूप में बौद्ध अवधारणाओं का जो प्रस्तुतीकरण हुआ वह इस तथ्य का प्रमाण है कि जैन आचार्य प्राचीन काल से ही बौद्ध प्रमाणशास्त्रीय अवधारणाओं की समीक्षा करते रहे हैं। डॉ० धर्मचन्द जैन ने इसी आधार को लेकर 'बौद्ध प्रमाण-मीमांसा की जैन दृष्टि से समीक्षा' नामक एक शोध-प्रबन्ध लिखा था और जिस पर उन्हें जयपुर विश्वविद्यालय से पी-एच. डी. की उपाधि भी प्राप्त हुई थी। प्रस्तुत ग्रन्थ उसी शोध-प्रबन्ध का संशोधित एवं परिमार्जित स्वरूप है। यद्यपि दर्शन एक दुरूह विषय है ही और उसमें भी प्रमाणशास्त्र तो अत्यन्त दुरूह विषय माना जाता है। डॉ० धर्मचन्द जैन ने इस दुरूह विषय पर कार्य करके अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है। यद्यपि ऐसे विषयों के पाठक अत्यन्त अल्प होते हैं फिर भी जैनविद्या के क्षेत्र में ऐसे अवदानों का प्रकाशन तो आवश्यक है ही। यही समझकर हमने इसके प्रकाशन के दायित्व का निर्वाह किया है। कृति कैसी बन पड़ी है, यह मूल्यांकन तो विद्वानों का कार्य है। आशा है उनके मन्तव्य हमारे लिए मार्गदर्शक होंगे। डॉ० धर्मचन्द जैन जैनविद्या के एक उदीयमान विद्वान हैं। उन्होंने न केवल प्रस्तुत ग्रन्थ को प्रकाशनार्थ पार्श्वनाथ विद्यापीठ को दिया, अपितु कम्प्यूटर पर इसकी कम्पोजिंग करवाने एवं प्रूफ-संशोधन का दायित्व स्वयं ही वहन किया। एतदर्थ हम डॉ० जैन के अत्यन्त आभारी हैं। ग्रन्थ के प्रकाशन और मुद्रण सम्बन्धी व्यवस्थाओं के लिए विद्यापीठ के निदेशक डॉ. सागरमल जैन एवं डॉ. श्रीप्रकाश पाण्डेय के प्रति हम विशेष रूप से आभार प्रकट करते हैं। मुद्रण के लिए वर्धमान मुद्रणालय, वाराणसी धन्यवाद का पात्र है। भूपेन्द्र नाथ जैन मन्त्री, पार्श्वनाथ विद्यापीठ वाराणसी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002113
Book TitleBauddh Pramana Mimansa ki Jain Drushti se Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, & Religion
File Size20 MB
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