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________________ आशीर्वचन डॉ.धर्मचन्द जैन का बौद्ध प्रमाण-मीमांसा की जैनदृष्टि से समीक्षा' निबन्ध,जैन आचार्यों द्वारा बौद्ध दर्शन की प्रमाण-चर्चा की जो परीक्षा की गई है उसे ही आधार बनाकर लिखा गया है। हिन्दी में यह प्रथम प्रयत्न है और कहना होगा कि प्रयत्न सफल है। ____ आचार्य अकलङ्क के द्वारा किये गये प्रारम्भ को आचार्य विद्यान्द ,प्रभाचन्द्र ,अभयदेव, वादिदेवसूरि आदि ने विस्तार दिया । डॉ.जैन ने इन सभी आचार्यों द्वारा की गई परीक्षा को इस ग्रन्थ में प्रस्तुत किया है। कहना होगा कि मूल ग्रन्थों के ही अध्ययन द्वारा किया गया यह प्रयत्न सफल है। पूर्वाचार्यों ने संस्कृत में जो लिखा है उसका सारांश प्रस्तुत निबन्ध में उत्तम रीति से प्राप्त होता है, इसके लिए डॉ.जैन अभिनन्दनीय हैं। इस ग्रन्थ के अध्ययन से पाठक को जैन और बौद्ध प्रमाण-मीमांसा की समग्र चर्चा अवगत होगी, ऐसा मेरा विश्वास है । मूल संस्कृत के ग्रन्थों के अध्ययन-अध्यापन की परम्परा जब शिथिल हो रही है तब ऐसे उत्तम ग्रन्थ विशेष उपयोगी सिद्ध होंगे, ऐसा मेरा विश्वास है। पण्डित दलसुख भाई मालवणिया अहमदाबाद ११ मार्च १९९५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002113
Book TitleBauddh Pramana Mimansa ki Jain Drushti se Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, & Religion
File Size20 MB
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