SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६ बौद्ध प्रमाण-मीमांसा की जैनदृष्टि से समीक्षा प्रतिपादित करते हैं। ११२ चीनी यात्री इत्सिंग अपने यात्रा विवरण में प्रज्ञागुप्त नामक विद्वान् का उल्लेख करता है,जो न्यायाचार्य को प्रज्ञाकरगुप्त ही प्रतीत होते हैं।११३ __ श्वेरबात्स्की के अनुसार प्रज्ञाकरगुप्त धार्मिक परम्परा के टीकाकार थे। अनेक सन्दर्भो में प्रज्ञाकरगुप्त धर्मकीर्ति के टीकाकार ही नहीं, अपितु उनसे स्वतन्त्र विचारक भी प्रतीत होते हैं। जैनदार्शनिक अकलङ्क अपने न्यायग्रंथों में प्रज्ञाकर का भूरिशःखण्डन करते हैं । अकलङ्क के टीकाकार वादिराजन्यायविनिश्चयविवरण में तथा अनन्तवीर्य सिद्धिविनिश्चयटीका में प्रमाणवार्तिकालङ्कार का बहुभाग उद्धृत करते हैं । प्रज्ञाकरगुप्त के भाष्य की अपेक्षा मनोरथनन्दी की वृत्ति धर्मकीर्ति के अभिप्राय को समझने में अधिक सहायक सिद्ध हुई है ,क्योंकि वह शब्दार्थपरक होते हुए भी धर्मकीर्ति के अभिप्राय को अधिक सक्षमता पूर्वक स्पष्ट करती है । दूसरी बात यह है कि यह वृत्ति प्रमाणवार्तिक के चारों परिच्छेदों पर लिखी गयी है । तथापि विस्तृत एवं व्यापक अध्ययन के लिए प्रज्ञाकरगुप्त के प्रमाणवाार्तिकभाष्य का महत्त्व निर्विवाद है। शान्तरक्षित और कमलशील (आठवीं सदी) ये दोनों आचार्य उत्तरभारत में मगध के निवासी थे ।११४ दिइनाग एवं धर्मकीर्ति के बाद ये दोनों दार्शनिक बौद्ध न्याय को कुछ भिन्न दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत करते हैं । गंगानाथ झा ने इनका समय ७०५ से ७६४ ई. निर्धारित किया है । ११५ शान्तरक्षित गुरु थे एवं कमलशील उनके शिष्य । ये दोनों नालन्दा विहार में रहे तथा फिर तिब्बत चले गये थे। शान्तरक्षित एवं कमलशील माध्यमिक सम्प्रदाय के आचार्य थे। माध्यमिक सम्प्रदाय भी दो प्रकार के हैं- प्रासंगिक एवं स्वातन्त्रिक । शान्तरक्षित स्वातन्त्रिक सम्प्रदाय से सम्बद्ध थे। श्वेरबात्स्की ने शान्तरक्षित एवं कमलशील को माध्यमिक-योगाचार अथवा माध्यमिक-सौत्रान्तिक के मिश्रित सम्प्रदाय से सम्बद्ध माना है । ११६ डॉ.जगन्नाथ उपाध्याय ने उन्हें स्वातन्त्रिक-माध्यमिक सम्प्रदाय से सम्बद्ध मानकर उसे व्यवहारविज्ञानवाद कहा है । वे कहते हैं कि वसुबन्यु दिइनाग एवं धर्मकीर्ति के द्वारा पारमार्थिक विज्ञानवाद स्वीकृत था,किन्तु शान्तरक्षित एवं कमलशील व्यावहारिक विज्ञानवादी थे। ११७ सरल शब्दों में इसे यूं कहा जा सकता है कि वे दोनों माध्यमिक होकर भी विज्ञानवादी थे और उन्होंने तत्वसङ्ग्रह एवं उसकी पञ्जिका का निर्माण कर सौत्रान्तिकविज्ञानवादी होने का प्रमाण दिया है। ११२. अकलङ्कअन्यत्रय, प्रस्तावना, पृ०२७ ११३. अकलङ्कग्रन्थत्रय, प्रस्तावना, पृ०२६ ११४. स्वामी द्वारिकादास शास्त्री ने इन्हें बंगाल के ढाका जिले के जाहोर नामक ग्राम में उत्पत्र बतलाया है।-तत्त्वसङ्ग्रह, प्रस्तावना, पृ०२४ ११५. द्रष्टव्य, तत्वसङ्ग्रह, गंगानाथ झा द्वारा संपादित एवं अनूदित अंग्रेजी संस्करण, मोतीलाल बनारसीदास, प्रस्तावना । ११६. Buddhist Logic, Vol. 1,p. 45 ११७. तत्त्वसङ्ग्रह, बौद्धभारती प्रकाशन, प्रास्ताविक किञ्चित. पृ०१४ प्रस्तावना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002113
Book TitleBauddh Pramana Mimansa ki Jain Drushti se Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, & Religion
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy