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________________ ३४६ बौद्ध प्रमाण-मीमांसा की जैनदृष्टि से समीक्षा जलने का अनुभव नहीं होता, अतः स्वलक्षण को शब्द का विषय नहीं कहा जा सकता। स्वलक्षण यदि शब्द का विषय होता तो शब्द के प्रतिभासित होने पर स्वलक्षण अर्थ भी प्रतिभासित होता। सामान्य को भी शब्द का विषय नहीं कहा जा सकता,क्योंकि सामान्य का होना ही असंभव है। यदि सामान्य की सत्ता मानी जाय तो नित्य स्वभाव सामान्य द्वारा क्रम से एवं युगपद् अर्थक्रिया नहीं हो सकती,इसलिए शब्द का विषय अर्थ नहीं अन्यापोह है। ___ अपोह का अर्थ निषेध है । वह दो प्रकार का है - पर्युदास एवं प्रसज्य । पर्युदास भी दो प्रकार का है बुद्ध्यात्मा और अर्थात्मा । शब्द इनमें मुख्यतः प्रथम प्रकार के अपोह (बुद्ध्यात्मा) का वाचक होता है ।२८१ शब्द एवं अपोह का वाचकवाच्यभाव कार्यकारणभाव रूप है। शब्द से बुद्धि में प्रतिबिम्ब उत्पन्न होता है और वह शब्द का वाच्य होता है ।२८२ उत्तरपक्ष (प्रभाचन्द्र) - शब्द एवं लिङ्ग का विषय अपोह को मानना उचित नहीं क्योंकि वह किसी प्रमाण से सिद्ध नहीं है । जो किसी प्रमाण से सिद्ध न हो उसे विषय बनाना उपपन्न नहीं है। अपोह की सिद्धि न प्रत्यक्ष प्रमाण से होती है और न अनुमान प्रमाण से । प्रत्यक्ष से 'अपोह' सिद्ध नहीं है, क्योंकि प्रत्यक्ष का विषय स्वलक्षण है । अनुमान से भी वह सिद्ध नहीं है,क्योंकि अपोह की सिद्धि में कोई अविनाभावी लिङ्गनहीं है । अपोह अर्थात् अन्यव्यावृत्ति के साथ तादात्म्य एवं तदुत्पत्ति सम्बन्ध घटित नहीं होता है अतः बौद्ध मत से भी उसमें अविनाभाव नहीं हो सकता । अन्यापोह नीरूप है,अतः उसके साथ किसी का तादात्म्य एवं तदुत्पत्ति सम्बन्ध घटित नहीं होता।२८३ ___यदि 'गो' शब्द के द्वारा मुख्यतः अगो' शब्द की निवृत्ति का प्रतिपादन किया जाता है तो 'गो' शब्द सुनने के पश्चात् श्रोता को पहले 'अगौ' की प्रतिपत्ति होनी चाहिए, किन्तु ऐसा नहीं होता है। 'गौ' शब्द से 'गौ' का ही प्रतिभास होता है, अगौ' का नहीं। इसी प्रकार गवय,हस्ती, वृक्ष इत्यादि शब्दों से विधिरूप ज्ञान होता है,निषेधरूप नहीं ।२८४ जिस प्रकार स्वलक्षणादि में संकेत संभव नहीं होने से शब्दार्थता घटित नहीं हो पाती,उसी प्रकार 'अपोह' में भी संकेत का अभाव होने से शब्दार्थता घटित नहीं होती ।२८५ 'इस शब्द का यह अर्थ है', इस प्रकार निश्चय करने वाला ज्ञाता ही संकेत का प्रयोग करता है । जबकि अपोह का किसी के द्वारा इन्द्रियादि से निश्चय नहीं होता है,क्योंकि अपोह' अवस्तुरूप है,जबकि इन्द्रियों का विषय वस्तुरूप होता है । अतः इन्द्रिय प्रत्यक्ष द्वारा अपोह का निश्चय करना अशक्य है । अनुमानप्रमाण द्वारा भी अपोह का निश्चय नहीं कियाजा सकता,क्योंकि सामान्य को वस्तुभूत स्वीकार किये बिना अनुमान २८१. बुद्ध्यात्मा पर्युदास के विवरण हेतु द्रष्टव्य, पृ. ३३९ २८२. न्यायकुमुदचन्द्र, पृ. ५५१-५५७ २८३. न्यायकुमुदचन्द्र, पृ. ५५७५५८ २८४. प्रमेयकमलमार्तण्ड, भाग-२, पृ.५३६-५३७ २८५. प्रमेयकमलमार्तण्ड, भाग-२, पृ.५४३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002113
Book TitleBauddh Pramana Mimansa ki Jain Drushti se Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, & Religion
File Size20 MB
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