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स्मृति ,प्रत्यभिज्ञान ,तर्क एवं आगम का प्रामाण्य तथा अपोह-विचार
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अनुमान की भांति प्रमाण माना है ।१३२ यहां लिङ्गलिङ्गी -सम्बन्धज्ञान से उनका अभिप्राय तर्कप्रमाण ही प्रतीत होता है। प्रमाणसङ्ग्रह नामक कृति में अकलङ्क ने प्रत्यक्ष एवं अनुपलम्भ से होने वाले सम्भव प्रत्यय को तर्क कहा है। १३३ यह सम्भव प्रत्यय व्याप्तिग्राहक ज्ञान ही है,जो साकल्य से अविनाभाव सम्बन्ध का ग्रहण करता है।
विद्यानन्द ने प्रमाणपरीक्षा में तर्क का स्वरूप स्पष्ट करते हुए कहा है "जितना भी कोई धूम है वह सब अग्नि से उत्पन्न होता है । अग्नि के अभाव में धूम की उत्पत्ति नहीं होती है । इस प्रकार सकल देश एवं सकल काल की व्याप्ति से साध्य एवं साधन के सम्बन्ध का जो ऊहापोह ज्ञान होता है वह तर्क है । १३४ तर्क का दूसरा नाम ऊह भी है । १३५ अकलङ्कने तत्वार्थसूत्र का अनुसरण करते हुए इसके लिए चिन्ता शब्द का भी प्रयोग किया है ।१३६
माणिक्यनन्दी ने उपलम्भ एवं अनुपलम्भ से उत्पन्न व्याप्तिज्ञान को तर्क कहा है । १३ उपलम्भ का अर्थ है साध्य के होने पर साधन का होना तथा साध्य के नहीं होने पर साधन का नहीं होना। वादिदेवसरिने उपलम्भ एवं अनुपलम्भ से जन्य तीन कालों की व्याप्ति को जानने वाले ज्ञान को तर्क कहा है।९३८ उपलम्भ शब्द से यहां प्रत्यक्ष, आगम आदि प्रमाणों का ग्रहण किया गया है। हेमचन्द्राचार्य कहते हैं कि उपलम्भ शब्द प्रमाणमात्र का प्राहक है मात्र प्रत्यक्ष का ही नहीं ।१३९ ____ अकलङ्क के पूर्व जैनदर्शन में मतिज्ञान के भेद ईहा के लिए पट्खण्डागम में ऊहा एवं तत्वार्थाधिगमभाष्य में ऊहा एवं तर्क शब्द का भी प्रयोग हुआ है,९४° किन्तु अकलङ्क के द्वारा ऊह अथवा तर्क को परोक्ष प्रमाण के रूप में प्रतिष्ठित करने के पश्चात् ईहा के लिए ऊह या ऊहा का प्रयोग किसी भी जैन दार्शनिक ने नहीं किया है । आचार्य हेमचन्द्र ने तो इन दोनों में स्पष्ट भेद का प्रतिपादन करते हुए कहा है कि ऊह अर्थात् तर्क तो परोक्ष प्रमाण का भेद है तथा साध्य एवं साधन की त्रैकालिक व्याप्ति का ग्रहण करता है जबकि ईहाज्ञान वर्तमान कालिक विषयों को ग्रहण करता है एवं वह प्रत्यक्ष प्रमाण का भेद है। १४१
१३२. अष्टशती (अष्टसहस्री), पृ. २८० १३३. सम्भवप्रत्ययस्तर्कः प्रत्यक्षानुपलम्मतः।-प्रमाणसङ्ग्रह, १२ १३४. यावान् कचिदमः स सर्वः पावकजन्मैवापावकजन्मा वा न भवतीति सकलदेशकालव्याप्त्या
साध्यसाधनसम्बद्धोहापोहलक्षणो हि तर्कःप्रमाणयितव्यः।-प्रमाणपरीक्षा, प४४-४५ १३५. प्रमाणनयतत्त्वालोक, ३.७ एवं परीक्षामुख, ३.७ १३६. लघीयमय का ४९ १३७. उपलम्भानुपलम्भनिमित्तं व्याप्तिज्ञानमूहः । -परीक्षामुख, ३.७ १३८. उपलम्भानुपलम्भसम्भवं त्रिकालीकलितसाध्यसाधनसम्बन्धाधालम्बनं "इदमस्मिन् सत्येव भवति" इत्याद्याकारं
संवेदनमूहापरनामा तर्कः।-प्रमाणनयतत्त्वालोक, ३.७ १३९. प्रमाणमीमांसा, वृत्ति १.२.५ १४०. (१) ईहा ऊहा अपोहा मग्गणा गवसणा मीमांसा।- पखण्डागम, ५.५. ३८
(२) ईहा ऊहा तर्कः परीक्षा विचारणा जिज्ञासेत्यनान्तरम्।- तत्त्वार्थाधिगमभाष्य, १.१.१५ १४१. प्रमाणमीमांसा, वृत्ति १.१.२७
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