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________________ अनुमान-प्रमाण २५९ अनुपलब्धि हेतु का भी स्वभाव हेतु में ही अन्तर्भाव हो जाता है २५९ घट आदि के अभाव का अर्थ है घटादि से रहित भूतलादि का स्वभाव । अत: घट की अनुपलब्धि का अर्थ है घटविविक्त भूतल की स्वभावोपलब्धि । इस प्रकार अनुपलब्धि का स्वभाव हेतु में अन्तर्भाव मानना चाहिए। __ कार्यहेतु के अविनाभाव का ज्ञान प्रत्यक्ष एवं अनुपलम्भ के पंचक से होता है ।२६° प्रत्यक्ष एवं अनुपलम्भ का पंचक इस प्रकार है- (१) अग्नि एवं धूम से रहित उपलभ्यमान भूतल में अग्नि एवं धूम की अनुपलब्धि (२) तदनन्तर अग्नि की उपलब्धि एवं (३) उसके पश्चात् धूम की उपलब्धि (४) अग्नि की अनुपलब्धि एवं फिर (५) धूम की अनुपलब्धि । इस प्रकार प्रत्यक्ष एवं अनुपलम्भ के पंचक से कार्यकारणभाव का ज्ञान होता है कि अग्नि का कार्य 'धूम' है। जो जिसका कार्य होता है वह उससे नियत होता है। यदि कार्य,कारण से नियत न हो तो निरपेक्ष होने के कारण कार्य या तो नित्य सत् ही होगा या असत् ही होगा। सांराश यह है कि जो जिससे उत्पन्न होता हुआ एक बार उपलब्ध होता है वह उसी से उत्पन्न होता है किसी अन्य से नहीं।२६१ यदि अहेतु से भी कार्य की उत्पत्ति होने लगे तो सब कारणों से सब कार्यों की उत्पत्ति संभव है । अतः प्रत्यक्ष एवं अनुपलम्भ के पांच रूपों से कार्यहेतु की सार्वत्रिकी व्याप्ति प्रतीत होती है। स्वभाव हेतु की व्याप्ति तो विपक्ष में बाधक प्रमाण के सदभाव से होती है,यथा सत्त्वकी क्षणिकता के साथ । सत्त्व का लक्षण है अर्थक्रियाकारित्व । अर्थक्रिया क्रम से अथवा युगपद् हो सकती है । किन्तु अक्षणिक नित्य पदार्थ न तो क्रम से अर्थक्रिया कर सकता है और न युगपद् । क्रम से करने पर अक्षणिकता नहीं रहती तथा एक साथ करने पर भी नित्यता नहीं रह पाती । इस प्रकार नित्य अथवा अक्षणिक अर्थ में अर्थक्रिया शक्य नहीं होने से वह सत्त्व नहीं कहा जा सकता । क्षणिक पदार्थ ही अर्थक्रिया करने में समर्थ है, अत: क्षणिकता के साथ ही सत्त्व की व्याप्ति संभव है । क्षणिक एवं अक्षणिक से भिन्न कोई तृतीय प्रकार नहीं है जिसमें सत्त्व की या अर्थक्रिया की आशंका की जा सके ।२६२ अनुपलब्धि रूप समस्त हेतुओं का स्वभावानुपलब्धि में अन्तर्भाव हो जाता है। स्वभावानुपलब्धि एक प्रकार का स्वभाव हेतु है अत: उसका तादात्म्य से ही अविनाभाव है ।२६३ २५९. तुलनीय- अनुपलब्धेस्तु स्वभावेऽन्तर्भावः । - तत्त्वसंग्रहपञ्जिका, १४७७, पृ.५२६ २६०. तुलनीय- प्रत्यक्षानुपलम्भसाधनः कार्यकारणभावः।-हेतुबिन्दु,पृ.५३ २६१. तलनीय- नित्यं सत्त्वमसत्त्वं वाऽहेतोरन्यानपेक्षणात । __ अपेक्षातो हि भावानां कादाचित्कत्वसंभवः ॥- प्रमाणवार्तिक, ३.३५ २६२. तुलनीय- सन् शब्दः कृतको वा, यश्चैवं स सर्वोऽनित्यः यथा घटादिरिति । अत्र व्याप्तिसाधनं विपर्यये बाधकप्रमाणो पदर्शनम् । यदि न सर्वं सत् कृतकं वा प्रतिक्षणविनाशि स्यादक्षणिकस्य क्रमयोगपद्याभ्यामर्थक्रियायोगादर्थक्रियासा मर्थ्यलक्षणमतो निवृत्तमित्यसदेव स्यात्।-वादन्याय, पृ.७ २६३. तुलनीय-(१) स्वभावानुपलब्धिस्तु स्वभावहेतावन्तर्भावितेति तस्याः तादात्म्यलक्षण एव प्रतिबन्धः ।-हेतुबिन्दु टीका, (२) प्रभाचन्द्र कृत प्रतिपादन के लिए द्रष्टव्य, न्यायमदचन्द्र, भाग-२.प्र.४४४-४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002113
Book TitleBauddh Pramana Mimansa ki Jain Drushti se Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, & Religion
File Size20 MB
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