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________________ २५० बौद्ध प्रमाण-मीमांसा की जैनदृष्टि से समीक्षा के उदयादि का जब कोई निश्चित क्रम हो तो उनमें पूर्वभावी वस्तु द्वारा पश्चाद्भावी वस्तु का पूर्वचर हेतु के रूप में तथा पश्चाद्भावी वस्तु द्वारा पूर्वभावी वस्तु का उत्तरचर हेतु के रूप में क्रमभाव-अविनाभाव के कारण निश्चित एवं सम्यक् ज्ञान होता है । यथा-कृत्तिकोदय से शकटोदय का ज्ञान पूर्वचर हेतु का तथा कृत्तिकोदय से भरणि के उदय का ज्ञान उत्तरचर हेतु का उदाहरण है। बौद्ध दार्शनिकों ने पूर्वचर एवं उत्तरचर हेतु को पृथक् हेतु के रूप में स्वीकार नहीं किया है। प्रज्ञाकरगुप्त ने उन्हें कार्य हेतु में सम्मिलित करने का प्रयास किया है,किन्तु जैनदार्शनिक माणिक्यनन्दी, प्रभाचन्द्र एवं वादिदेवसूरि उनके इस मंतव्य का खण्डन करते हुए पूर्वचर एवं उत्तरचर हेतु को पृथक् हेतुओं के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं। बौद्ध दार्शनिकों के अनुसार तादात्म्य रूप अविनाभाव से स्वभावहेतु एवं तदुत्पत्ति रूप अविनाभाव से कार्य हेतु फलित होता है,किन्तु माणिक्यनन्दी कहते हैं कि पूर्वचर एवं उत्तरचर हेतुओं में तादात्म्य एवं तदुत्पत्ति सम्बन्ध नहीं है,क्योंकि इनमें काल का व्यवधान है । अतः इनका स्वभाव एवं कार्यहेतुओं में अन्तर्भाव नहीं हो सकता ।१४ प्रभाचन्द्र कहते हैं कि जिस प्रकार भविष्य में उत्पन्न होने वाले शंख नामक चक्रवर्ती के काल में असद्भूत (भूतकालीन) रावणादि का तादात्म्य या तदुत्पति सम्बन्ध नहीं हो सकता,उसी प्रकार शकट नक्षत्र के उदय काल में अथवा उसके अनन्तर कृत्तिका नक्षत्र का उदय नहीं होता । अतःइनमें तादात्म्य अथवा तदुत्पत्ति सम्बन्ध नहीं है । तादाम्य सम्बन्ध समकालीन कृतकत्व एवं अनित्यत्व आदि में होता है। तथा अग्नि एवं धूम आदि के समान परस्पर अव्यवहित काल में रहने वाले पदार्थों में तदुत्पत्ति सम्बन्ध हो सकता है,काल से व्यवहित पदार्थों में नहीं,अन्यथा अतिप्रसंग होगा।२१५ आगे प्रभाचन्द्र ने प्रज्ञाकर का मंतव्य देकर उसका निरसन किया है, यथाप्रज्ञाकर-भावी रोहिणी या शकट का उदय कृतिकोदय का कार्य है,अतःरोहिणी का उदय कार्यरूप से कृत्तिकोदय का गमक होने के कारण कार्यहेतु में अन्तर्भूत हो जायेगा। प्रमाचन्द्र-भरणी का उदय हो चुका,क्योंकि अभी कृत्तिका का उदय है, इसका अनुमान कैसे होगा? यदि भरणी का उदय भी कृत्तिकोदय का कारण है,अतः कृतिकोदय से भरणी का अनुमान हो जायेगा तो यह संभव नहीं है,क्योंकि जिस स्वभाव द्वारा भरणी का उदय होने से कृत्तिका का उदय हुआ,उसी स्वभाव से यदि शकट (रोहिणी) का उदय होने से कृत्तिका का उदय हुआ है,ऐसा मानेगें तो भरणी के उदय के बाद जिस प्रकार कृत्तिका का उदय होता है उसी प्रकार शकट के उदय के बाद भी कृत्तिका का उदय होना चाहिए तथा जिस प्रकार रोहिणी के उदय से पूर्व कृत्तिका का उदय होता है, उसी प्रकार भरणी के उदय से पूर्व भी कृत्तिका का उदय होना चाहिए। यदि अतीत एवं अनागत कारणों का एक २१४. न च पूर्वोत्तरचारिणोस्तादात्म्यं तदुत्पत्ति कालव्यवधाने तदनुपलब्बेः । परीक्षामुख, ३.५७ २१५. प्रमेयकमलमार्तण्ड, भाग-२,पृ.३९१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002113
Book TitleBauddh Pramana Mimansa ki Jain Drushti se Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, & Religion
File Size20 MB
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