SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 279
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४८ बौद्ध प्रमाण-मीमांसा की जैनदृष्टि से समीक्षा अतः कार्य के समान कारण भी व्याप्ति सद्भाव से हेतु ही है ।२०९ वादिदेव ने बौद्धों के इस कथन का खण्डन किया है कि कारण विशेष का निश्चय विपश्चित् पुरुष भी नहीं कर सकता । वादिदेव कहते हैं कि सुनिपुण प्रमाता कारण विशेष का निश्चय कर सकता है। जिस प्रकार कार्यगत विशेष का अभ्यास से अवधारण करके निपुण पुरुष कार्य से कारण का अनुमान करते हैं,उसी प्रकार कारणगत विशेष का अवधारण करके भी वे कारण से कार्य का अनुमान करते हैं।२१° क्योंकि कारण का अनुपलम्भ होने पर जिस प्रकार कार्य का अनुपलम्भ हो जाता है उसी प्रकार बोध्य के अभ्यास से कार्य का अनुपलम्भ भी कारण के अनुपलम्भ का ज्ञान कराता है। ___ बौद्धों के इस मंतव्य का कि अकाण्ड आडम्बर करने वाले प्रचण्ड बादल भी अनेक बार नहीं बरसते हैं,वादिदेवसरि निरसन करते हुए कहते हैं कि बौद्धों का कथन प्रलाप मात्र है,क्योंकि विशिष्ट उन्नति आदि धर्म समूह से युक्त बादल रूप कारण का निकट काल में होने वाली वर्षा रूप कार्य से अव्यभिचार देखा जाता है। जिन बादलों का तूफान आदि से विध्वंसन हो जाता है उन बादलों का वर्षा से यदि व्यभिचार पाया जाता है तो उन बादलों को वादिदेवसूरि भी वर्षा रूप कार्य का गमक नहीं कहते हैं ।उनका कथन है कि एक स्थान पर कारण का कार्य से व्यभिचार प्राप्त होने पर सर्वत्र व्यभिचार बतलाना परीक्षकपुरुषों के लिए उचित नहीं है, अन्यथा समस्त अनुमान व्यवहार के प्रलय का प्रसङ्ग आता है । गोपालघटिका के धूम से अग्नि के साथ व्यभिचार प्राप्त होने पर यदि सर्वत्र धूम का अग्नि के साथ व्यभिचार मान लिया जाय तो पर्वत की कन्धरा में विद्यमान धूम से भी अग्नि का अनुमान नहीं हो सकेगा। बौद्धों ने समग्र हेतु से कार्य की उत्पत्ति कहते हुए भी योग्यतानुमान से उसे स्वभाव हेतु में अन्तर्भूत किया है, वह भी उचित नहीं है। साध्य एवं साधन का एकान्त तादात्म्य स्वीकार करने पर स्वभावानुमान संभव नहीं है,क्योंकि लोक समग्र कारण से कार्य का ही अनुमान करता है, योग्यता का नहीं ।२११ हेमचन्द्र ने भी कारण हेतु की सिद्धि में पूर्ववर्ती विद्यानन्द, प्रभाचन्द्र आदि का अनुकरण किया है। हेमचन्द्र का कथन है कि कारण को हेतु स्वीकार किये बिना कार्य में प्रवृत्ति नहीं होती । समस्त कार्यार्थी पुरुष कारण विशेष को देखकर ही कार्य में प्रवृत्त होते हैं । २१२ वाष्प या मशकों की बाती के रूप में सन्दिग्ध धूम का निश्चित ज्ञान उसके कारण अग्नि द्वारा ही होता है। इसी प्रकार वर्षा का अनुमान विशिष्ट मेघोन्नति से होता हुआ देखा गया है । हेमचन्द्र भी उसी कारण को सद्हेतु मानते हैं जो निश्चित रूप से कार्य का जनक हो,जिसकी शक्ति मन्त्रादि से बाधित न हो तथा जिसमें कारणान्तरों २०९. स्याद्वादरलाकर, पृ.५८७ २१०.स्याद्वादरत्नाकर, पृ.५८८ २११. स्याद्वादरलाकर पृ.५८८-८९ २१२. कारणविशेषाद्धि सर्वः कार्यार्थी प्रवर्तते ।-प्रमाणमीमांसा, वृत्ति १.२.१२, पृ. ४२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002113
Book TitleBauddh Pramana Mimansa ki Jain Drushti se Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, & Religion
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy