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________________ xii बौद्ध प्रमाण-मीमांसा की जैनदृष्टि से समीक्षा बीच फैला हुआ है । आठ सौ वर्षों के इस दीर्घकाल में दो मोक्षोन्मुख चिन्तनधाराओं के बीच जो प्रमाणशास्त्रीय विवाद के मुद्दे उठे,उनका विश्लेषण रोचक,ज्ञानवर्द्धक और महत्त्वपूर्ण है। इस काल-खण्ड में बौद्ध और जैन के अतिरिक्त भी जो दार्शनिक परम्पराएं पनपी उनमें चार्वाक के एक नगण्य अपवाद को छोड़कर सभी परम्पराएं मोक्षोन्मुखी हैं। __ मोक्ष को जीवन का चरम लक्ष्य मानने वाली इन सभी परम्पराओं के बीच परस्पर भेद है, यह सत्य है, किन्तु उससे भी बड़ा सत्य यह है कि मोक्षोन्मुखी होने के कारण ये सभी परम्पराएं भोग की अपेक्षा संयम को महत्त्व देती हैं । विवेच्य काल खण्ड में भोगपरायण व्यक्ति नहीं थे,ऐसा तो नहीं है, किन्तु भोगवाद का कोई व्यवस्थित,गंभीर दर्शन नहीं बन पाया था। इधर पिछले कुछ वर्षों में ऐसा लगता है कि भोगवाद को न्याय संगत ठहराने के लिए एक व्यवस्थित दर्शन विकसित हो रहा है । यह दर्शन किसी एक परम्परा पर चोट न करके समस्त मोक्षोन्मुखी परम्पराओं के मूल पर चोट कर रहा है । मुझे कभी-कभी लगता है कि आज सब मोक्षोन्मुखी परम्पराओं के लिए युधिष्ठिर का वह वचन स्मरणीय है जिसमें उन्होंने कहा था कि परस्पर विरोध होने पर पाण्डव पांच हैं,कौरव सौ हैं, किन्तु किसी अन्य के साथ विरोध होने पर हम एक सौ पांच हैं परस्परविरोधे तु वयं पञ्च शतानि ते। अन्यै : सह विरोधे तु वयं पशोत्तरं शतम्॥ भोग-प्रधान विचारधारा के आक्रमण का सभी योग-प्रधान विचारधाराओं को पारस्परिक मतभेद भुलाकर सामना करना होगा। मैं डॉ. धर्मचन्द जैन जैसे प्रतिभाशाली भारतीय संस्कृति के अध्येताओं से यह अपेक्षा रखता हूँ कि वे अपने स्वाध्यायशील जीवन के श्रमपूर्ण समय को भारतीय संस्कृति के उस समन्वित रूप को उजागर करने में लगाएंगे,जिसका मूल स्वर असत् से सत् की ओर,तमस् से ज्योति की ओर तथा मृत्यु से अमृतत्व की ओर अग्रसर होने का है - असतो मा सद्गमय तमसो मा ज्योतिर्गमय मृत्योर्माऽमृतं गमय। डॉ.दयानन्द भार्गव आचार्य एवं अध्यक्ष,संस्कृत-विभाग जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय,जोधपुर (राज) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002113
Book TitleBauddh Pramana Mimansa ki Jain Drushti se Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, & Religion
File Size20 MB
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