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________________ १४२ बौद्ध प्रमाण-मीमांसा की जैनदृष्टि से समीक्षा है या नारी की है,अथवा वाद्ययन्त्र की है इस रूप में शंका होने के साथ ही यह निश्चय हो कि यह आवाज पुरुष की होनी चाहिए, यह ज्ञान ईहा है ।२०८ ईहा ज्ञान संशय पूर्वक होता है ,किन्तु संशय रूप नहीं है ,क्योंकि संशय में तो ज्ञान निश्चयात्मक नहीं हो पाता किन्तु ईहा में निर्णयपरक होता है ।२०९ वादिदेवसरि ने प्रतिपादित किया है कि ईहा ज्ञान संशयपूर्वक होता है, इसलिए वह संशय से भिन्न है ।२१° एक प्रकार से कहा जाय तो ईहा ज्ञान संदेह को दूर करता है । आचार्य हेमचन्द्र का मत है कि अवग्रह एवं ईहा के बीच संदेह की स्थिति सदैव उत्पन्न होती है ,किन्तु शीघ्रता के कारण उपलक्षित नहीं होती ।२११ अवाय- ईहित अर्थविशेष का निर्णय अवाय है ।२१२ यथा शब्द सुनकर यह ईहा हुई कि ये शब्द पुरुष के होने चाहिए,अवाय में यह निर्णय हो जाता है कि यह पुरुष के ही शब्द हैं। संक्षेप में यदि कहा जाय तो अवाय को ही प्रत्यक्ष प्रक्रिया में पूर्ण निर्णयात्मक ज्ञान कहा जा सकता है और यही प्रमाण का वास्तविक स्वरूप है,जो हेयोपादेय का ज्ञान कराता है । इस अवाय के लिए अपाय' शब्द का भी प्रयोग हुआ है। धारणा -जिनभद्र ने अवाय ज्ञान की अविच्युति को धारणा कहा है ।२१३ अकलङ्क एवं विद्यानन्द ने स्मृति के हेतु को धारणा कहा है ,२१४ किन्तु वादिदेवसूरि ने धारणा को स्मृति का साक्षात् हेतु मानने का खण्डन किया है तथा उसे पारम्परिक हेतु माना है ।२१५ उनके मत में अवाय ज्ञान जब दृढतम अवस्था को धारण कर लेता है ,तो उसे धारणा कहा जाता है । २१६ हेमचन्द्र का मत है कि धारणा के होने पर ही स्मृति का होना शक्य है, इसलिए धारणा को स्मृति का हेतु मानना सर्वथा उचित है ।२१७ उनका कथन है कि धारणा के अभाव में स्मृति रूपपरोक्ष ज्ञान नहीं हो सकता,क्योंकि अवग्रह आदि तीनों ज्ञान तो अन्तर्मुहूर्त (अधिकतम अड़तालीस मिनिट) तक विद्यमान रहते हैं ।२१८ संक्षेप में कहें २०८. अवाह ईहा, अवाय एवं धारणा को समझने के लिए नन्दीसूत्र में दिये गये उदाहरण द्रष्टव्य है । देखिए, नन्दीसूत्र, ३५ (१) प्रतिबोधक दृष्टान्त (२) मल्लक दृष्टान्त २०९. निश्चयाधिमुखं सेहा संशयाद्धिनलक्षणा ।-विद्यानन्द तत्त्वार्यश्लोकवार्तिक, १.१५.३ २१०. संशयपूर्वकत्वादीहायाः संशया भेदः।-प्रमाणनवतत्वालोक, २.११ २११. इह चावबहेहबोरन्तराले अभ्यस्तेऽपि विषये संशयज्ञानमस्त्येव आशुभावात्तु नोपलक्ष्यते ।-प्रमाणमीमांसावृत्ति, १.१.२७.१० २१ २१२.(१) अवायो विनिश्चयः।-लपीयमय ५ .(२) तस्यैव निर्षयोऽवायः -तत्वार्यश्लोकवार्तिक १.१६.४ . (३) इंहितविशेषनिर्णयोऽवायः।-प्रमाणनयतत्त्वालोक, २.९ २१३. अविच्चुई धारणा होइ -विशेषावश्यकभाष्य, १८० २१४.(१) धारणा स्मृतिहेतुः।- लपीवमय (२) स्मृतिहेतुः स धारणा- तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, १.१५.४ २१५. स्वादादरलाकर, २.१०.१० ३४९ २१६. स एव दृढतमावस्थापन्नो धारणा।-प्रमाणनयतत्त्वालोक, २.१० २१७.स्मृतिहेतुधारका प्रमाणमीमांसा, १.१.२९ २१८. अवब्रह्मादवस्तु प्रान्तमाहूर्तिकाः।-प्रमाणमीमांसावृत्ति, १.१.२९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002113
Book TitleBauddh Pramana Mimansa ki Jain Drushti se Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, & Religion
File Size20 MB
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