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बौद्ध प्रमाण-मीमांसा की जैनदृष्टि से समीक्षा
रूप में सम्मति प्रदान की है। पं. मालवणिया जी ने इस शोध कार्य को प्रारम्भ करने से पूर्व भी मेरा अमूल्य मार्गदर्शन किया था । उनके अतिरिक्त जैनविद्या के विद्वानों में मुझे जिनसे अपने कार्य में मार्गदर्शन एवं सत्परामर्श मिला, वे हैं- स्व. आचार्य श्री हस्तीमल जी महाराज सा., डा. नथमल टाटिया, डा. दरबारी लाल कोठिया तथा डॉ. नगीन जे. शाह । मैं इन समस्त सुधीजनों के प्रति श्रद्धानत हूँ ।
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श्री जैन सिद्धान्त शिक्षण संस्थान, जयपुर के अधिष्ठाता गुरुजी श्री कन्हैयालाल जी लोढ़ा के अनन्य प्रेम, प्रेरणा एवं मार्गदर्शन का आभार मैं शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता । साधना भवन, जयपुर की प्रबंध समिति व विद्यार्थियों का मैं ऋणी हूँ जिन्होंने मुझे साधना भवन का एकान्त एवं शान्त वातावरण प्रदान कर शोधकार्य सम्पन्न करने में अमूल्य सहयोग दिया । गुरुवर्य डॉ. श्रीकृष्ण शर्मा, सह- आचार्य, संस्कृत-विभाग, जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय ने ग्रन्थ के प्रकाशन से पूर्व अमूल्य एवं उपयोगी सुझाव दिए, एतदर्थ मैं उनका भी हृदय से कृतज्ञ हूँ ।
इस कृति की सम्पन्नता में विभिन्न पुस्तकालयों का सहयोग रहा है, जिनमें प्रमुख हैं - राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर, ओरियण्टल इंस्टीट्यूट, बड़ौदा, लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्या मंदिर, अहमदाबाद, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी, श्री विनयचन्द्र ज्ञान भण्डार, जयपुर, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर, श्री जैन सिद्धान्त शिक्षण संस्थान, जयपुर, श्री सन्मति पुस्तकालय, जयपुर, जैन अनुशीलन केन्द्र एवं दर्शनशास्त्र विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर, जैन विश्वभारती, लाडनूं आदि। इनके अतिरिक्त व्यक्तिगत पुस्तकालयों से भी मुझे पूर्ण सहयोग मिला है, जिनमें डॉ. आर.सी. द्विवेदी, जयपुर, सुश्री शान्ति जैन, कोटा, सुहृद्वर डॉ. राजकुमार छाबड़ा, जयपुर के पुस्तकालय प्रमुख रहे हैं। मैं इन सबका कृतज्ञ हूँ ।
मैं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग एवं कालेज शिक्षा निदेशालय, राजस्थान का भी आभार मानता हूँ जिनके द्वारा मुझे टीचर रिसर्च फेलोशिप प्रदान कर अध्ययनार्थ चार वर्ष (१९ मार्च, १९८५ से १८ मार्च १९८९) का समय दिया गया ।
अन्त में मैं आभारी हूँ प्रख्यात जैन विद्वान् डॉ. सागरमल जी जैन का, जिन्होंने अगाध स्नेह एवं आत्मीयता के साथ पूज्य सोहनलाल स्मारक पार्श्वनाथ शोध पीठ, वाराणसी से इस ग्रन्थ का प्रकाशन किया। इस ग्रन्थ को प्रकाशनयोग्य बनाने के लिए जे.के. कम्प्यूटर सेन्टर जोधपुर के श्री जितेन्द्र जोशी को भी मैं धन्यवाद देना अपना कर्तव्य समझता हूँ ।
धर्मचन्द जैन
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